माकूल जवाब की तैयारी

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पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले को जैसे—जैसे समय बीतता जा रहा है वैसे—वैसे सरकार पर इस हिमाकत पूर्ण कार्यवाही का आतंकियोंं और पाकिस्तान को जवाब देने का दबाव भी बढ़ता जा रहा है। एक तरफ देश के लोगों द्वारा सरकार पर सवालों की बौछार की जा रही है वहीं तमाम विश्व के देश भी भारत क्या करने वाला है? कब करेगा? करेगा भी या कुछ नहीं करेगा? इसे लेकर तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी से लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और गृहमंत्री अमित शाह तक इसका करारा जवाब देने की बात अपने—अपने अलग अंदाज में कह चुके हैं। देश की सरकार इसका क्या जवाब देने जा रही है? इसकी क्या तैयारी कर रही है? यह सब कुछ सार्वजनिक नहीं होना चाहिए था? अगर ऐसा होता तो सरकार को इन तमाम सवालों के जवाब देने के दबाव से बचा जा सकता था। लेकिन सत्ता में बैठे लोगों से यह चूक हो चुकी है। अभी अच्छा यही होगा कि सरकार किसी भी दबाव में आकर कोई फैसला न ले। इस आतंकी हमले का जवाब दिया जाना तो जरूरी है उसे टाला नहीं जा सकता है लेकिन इसका माकूल जवाब क्या हो सकता है? तथा जवाब कब और कैसे दिया जाएगा? इसका फैसला सरकार को ठंडे दिमाग से और सोच समझकर लेने की जरूरत है। क्योंकि इस 21वीं सदी के दौर में युद्ध अब पूर्व में लड़े गए युद्धों की तरह नहीं लड़े जा सकते हैं। आज के दौर में छोटे से छोटा मुल्क भी जब परमाणु हथियारों से लैस हैं तथा सत्ता और सेना के शीर्ष कुछ पाकिस्तानी सेना प्रमुख मुनीर जैसे सिरफिरे लोग तथा सांसद बेअक्ल लोग बैठे हो कि जो कहें कि हमने परमाणु बम नुमाइश में प्रदर्शन के लिए नहीं बनाए हैं। इस मामले में भारत को इस बात का ध्यान रखना होगा कि साबरमती नदी के किनारे पीएम मोदी के साथ झूला झूलने वाले चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग और उनके देश चीन पाकिस्तान के साथ खड़ा है ऐसे में पाकिस्तान को कतई भी हल्के में नहीं लिया जा सकता है। अब अगर पाकिस्तान के साथ भारत का युद्ध होता है तो वह 1971 जैसा युद्ध नहीं होगा। जब पश्चिम बंगाल की धरती पर पाक की सेना को सरेन्डर पर विवश होना पड़ा था। जिस पहलगाम की आतंकी घटना को लेकर भारत—पाक के बीच एक और युद्ध की यह लकीर खिंच चुकी है उस हमले को अंजाम देने वाले वह आतंकी जिन्होंने 28 लोगों को मौत की नींद सुला दिया वह कहां गायब हो गए हैं। उन्हें आसमान निगल गया या फिर जमीन खा गई आज इस हमले को हुए 15 दिन का समय बीत चुका है। हमारी सेना और पुलिस तथा सुरक्षा बल अपनी ही धरती पर अभी तक उन्हे नहीं ढूंढ सके हैं। क्या यह हमारी और हमारे सिस्टम की बड़ी नाकामी नहीं है हमें इनके न तो देश में घुसने का पता चला और न हमला करने की जानकारी हो सकी और अब हम उनकी तलाश भी नहीं कर पाए हैं, तो क्या हम सिर्फ हवा में ही बड़ी—बड़ी फेंकते रहते हैं? यह देश की सुरक्षा का मामला है कोई हंसी मजाक नहीं है। इसे भी अगर गंभीरता से नहीं लिया जा सकता है तो हम और क्या कर सकते हैं।

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