संकल्प नए विकल्प का

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उत्तराखंड राज्य गठन से लेकर अब तक के ढाई दशक में भाजपा और कांग्रेस ही सत्ता पर अपना कब्जा बनाए रही है। एक समय में भाजपा और कांग्रेस बारी—बारी से सत्ता पर काबिज होती रही लेकिन अब भाजपा इस मिथक को तोड़ चुकी है। लगातार दो बार विधानसभा चुनाव जीत चुकी भाजपा अब स्वयं को इतनी मजबूत स्थिति में लाकर खड़ा कर चुकी है कि वह 2027 के चुनाव में लगातार चुनाव जीतने की हैट्रिक भी लगा देती है तो शायद इस पर किसी को भी हैरानी नहीं होगी। वह लोकसभा चुनाव में लगातार दो बार राज्य की सभी पांच की पांच सीटों पर जीत दर्ज कर चुकी है। भाजपा की इस मजबूती का प्रमुख कारण उसके सांगठनिक ढांचे का मजबूत होना तो है ही इसके साथ ही 2016 में हुए कांग्रेस का वह विभाजन भी है जिसने कांग्रेस को कमजोर कर दिया था। राज्य गठन के बाद यूकेडी को राज्य के लोग एक तीसरे विकल्प के तौर पर देख जरूर रहे थे लेकिन समय के साथ यूकेडी लगातार कम होती गई और अब अस्तित्व विहीन हो चुकी है। कांग्रेस के कमजोर विपक्ष और यूकेडी के अस्तित्व विहीन होने का सारा फायदा अकेले भाजपा को मिला है जिससे राज्य की राजनीति में उसे एकाधिकार की स्थिति तक पहुंचा दिया है। यदि राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो लोकतंत्र में किसी भी दल के एकाधिकार की स्थिति हितकारी नहीं मानी जाती है। मजबूत लोकतंत्र के लिए एक मजबूत विपक्ष भी जरूरी होता है। जो अब उत्तराखंड में दिखाई नहीं दे रहा है। यूं तो राज्य में तीसरे राजनीतिक मोर्चे की शुगबुहाहट लंबे समय से जारी है लेकिन अभी राजनीति में कुछ नए चेहरों ने दस्तक दी है तथा अलग—अलग मुद्दों पर आंदोलनों और निर्दलीय चुनाव लड़ने के जरिए अपनी पहचान बनाने वाले यह युवा चेहरे अब एक मंच पर आते दिख रहे हैं। होली पर इन युवा चेहरों द्वारा एक साझा पत्रकार वार्ता का आयोजन कर एक नए संगठन उत्तराखंड स्वाभिमान मोर्चा के गठन का ऐलान किया गया है जिसका अध्यक्ष बॉबी पवार को बनाया गया है। जिन्होंने बीते दिनों बेरोजगार छात्र संघ के जरिए पेपर लीक और भर्ती घोटाले को लेकर सूबे के युवाओं को अपनी ओर आकर्षित कर ऐसा धमाल मचाया था की टिहरी से चुनाव में निर्दलीय चुनाव लड़कर 1 लाख 68 हजार वोट बटोर कर सभी को चौंका दिया था। भले ही वह लोकसभा चुनाव हार गए। लेकिन उनकी यह हार भी जीत से बड़ी जीत के तौर पर देखी गई थी। मोहित डिमरी, लुखिंग डोबरियाल, त्रिभुवन चौहान आदि जो नाम इस उत्तराखंड स्वाभिमान मोर्चे का हिस्सा है इनमें से अब कोई भी नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। यह मोर्चा भले ही अभी इसे राजनीतिक दल का नाम ना दिया जा सकता हो, लेकिन इसका संकल्प नये विकल्प का श्लोगन यह बताने के लिए काफी है कि 2027 के चुनाव में कांग्रेस के साथ—साथ भाजपा को राजनीतिक चुनौती पेश करेगा। यह बात अभी भले ही समय के गर्भ में है कि क्या यह मोर्चा भाजपा को हराने में कामयाब हो पाएगा? या इसका हश्र भी यूकेडी और उत्तराखंड मोर्चे जैसा ही होगा।

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