इस बार होली से पूर्व जिस तरह का माहौल है उस पर किसी को हैरान नहीं होना चाहिए। देश के अंदर लंबे समय से हिंदू—मुस्लिम के मुद्दे को गरमाया जा रहा है। नेताओं द्वारा दिए जाने वाले बयान इस मुद्दे को हवा दे रहे हैं। भले ही दोनों ही पक्ष के आम लोग अमन और चैन से खुद भी रहना चाहते हो और दूसरों को भी चैन से रहने देने की बात कर रहे हो लेकिन नेताओं और धर्म गुरुओं के सांप्रदायिक बयान और एक दूसरे के खिलाफ टीका टिप्पणी करने को लेकर संकोच नहीं किया जा रहा है। रंग की होली वाले दिन रमजान के जुमे की नमाज भी है। इसे लेकर अभी से तरह—तरह की आशंकाएं व्यक्त की जा रही है। कुछ नेताओं द्वारा इस तरह के बयान भी दिए जा रहे हैं कि जिन मुसलमानों को रंग से परेशानी है वह अपने घरों में रहे। अपने लिए तिरपाल का हिजाब सिलवा ले जिससे उन पर रंग का असर न हो। सीओ संभल का एक बयान इन दिनों चर्चाओं में है जिसमें उन्होंने कहा है कि होली साल में एक बार आती है जबकि जुमा साल में 52 बार आता है। पहले 2 बजे तक मुस्लिम हिंदुओं को होली खेलने दे उसके बाद जुमे की नमाज पढ़े जिन्हें रंगों से परहेज है वह घरों में रहकर नमाज पढ़े। सीओ संभल के इस बयान का समर्थन किया गया है सीएम योगी का कहना है कि इसमें उन्होंने कुछ भी गलत नहीं कहा है। उधर कुछ उलेमाओं द्वारा 13 मार्च को होली के दिन दिल्ली के जंतर—मंतर पर वक्फ बिल के विरोध में देश भर के मुसलमान को धरना प्रदर्शन में आने का आह्वान किया जा रहा है। त्योहार के दिनों में एक समुदाय विशेष द्वारा इस तरह के आयोजन जिसमें बड़ी संख्या में लोगों को इकट्ठा होने की संभावना है माहौल बिगाड़ने की कोशिश माना जाना कतई भी गलत नहीं है। जुमे की नमाज जुमे को ही पढ़ी जानी चाहिए यह तो समझ में आता है लेकिन होली पर धरना विरोध के इस आयोजन के लिए तो कोई भी तारीख तय की जा सकती थी। ऐसा नहीं है कि देश में हिंदू और मुसलमानों के त्यौहार पहले कभी एक साथ नहीं मनाए गए हैं। ऐसी स्थिति में इन त्योहारों के दौरान और भी अधिक सांप्रदायिक एकता के साथ यह त्यौहार मनाये जाते रहे हैं लेकिन वर्तमान समय में देश भर में धर्म के ठेकेदारों द्वारा तरह—तरह की घोषणाएं की जा रही हैं। हालात के मद्दे नजर उत्तर प्रदेश और दिल्ली सहित अन्य कई राज्यों में भारी संख्या में पुलिस फोर्स की तैनाती की गई है। सामाजिक सुरक्षा को लेकर हर तरह की प्रयास और इंतजाम किए जा रहे हैं। जुमे की नमाज और रंग खेलने के लिए समय सीमाओं की तय करने से लेकर अन्य तमाम व्यवस्थाओं को भी किया जा रहा है। जिन रास्तों से होली पर यात्राएं निकाली जानी है उन रास्तों पर जो मस्जिदे है उन्हें तिरपाल से ढका जाने का काम शुरू हो चुका है। सवाल यह है कि गंगा जमुनी सभ्यता और संस्कृति की मिसाल देने वाले लोग और साथ—साथ ईद, होली दिवाली मनाने वाले तथा मुबारकबाद देने वाले लोग आमने—सामने खड़े हैं। नमाजियों के कपड़े पर रंग की एक बूंद भी न पड़ने पाये, यात्राओं पर ईंट और पत्थर न चले इसे रोकने के लिए पुलिस और प्रशासन मुस्तैद है। त्यौहार भाईचारे का प्रतीक है लेकिन इस भाईचारे को सुनिश्चित करने की बड़ी जिम्मेदारी प्रशासन के ऊपर है। टकराव और कड़वाहट भरे वातावरण में इस बार होली और रमजान के रंग फीके पड़ रहे हैं। किसी भी स्थिति में इसे ठीक नहीं ठहराया जा सकता। अच्छा हो कि त्योहारों को अमन चैन के साथ मनाया जा सके। यही देश और समाज के हित में है।