इंडिया गठबंधन पर सवाल

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दिल्ली में आम आदमी पार्टी की करारी हार के बाद अब इंडिया गठबंधन के भविष्य को लेकर भी सवाल उठने लाजिमी है। इस हार पर उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा जो प्रतिक्रिया दी गई है वह काबिले गौर है। हरीश रावत का कहना है कि दिल्ली के चुनावी नतीजे इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों के लिए एक सबक है। उनके इस बयान का सीधा मतलब है कि अगर इंडिया गठबंधन के सहयोगी दल कांग्रेस को अपनी सफलता की सीढ़ी बनाकर आगे बढ़ना चाहते हैं और कांग्रेस को पीछे धकेलना चाहते हैं तो कांग्रेस इसे कतई गवारा नहीं करेगी। इंडिया गठबंधन के गठन से लेकर सहयोगी दलों का रवैया यही रहा है। कांग्रेस भले ही दिल्ली चुनाव से पूर्व तक सहयोगी दलों की भावनाओं को प्राथमिकता देती रही हो लेकिन दिल्ली के चुनाव में कांग्रेस ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है। भले ही कांग्रेस इस चुनाव में एक भी सीट न जीत सकी हो लेकिन उसने अपने प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतार कर आम आदमी पार्टी का लुटिया ही नहीं डुबो दी है बल्कि कांग्रेस ने उन तमाम सहयोगी दलों को आईना जरूर दिखा दिया है जो क्षेत्रीय राजनीतिक दल होते हुए भी कांग्रेस को यह नसीहतें देने से बाज नहीं आ रहे थे कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। अरविंद केजरीवाल हो या फिर नीतीश कुमार जिन्होंने इंडिया गठबंधन की नींव रखी अथवा ममता बनर्जी जिन्हें हमने इंडिया गठबंधन का नेतृत्व करने की बात कहते देखा था। क्या प्रधानमंत्री बनने के सपने देखने वाले इन तमाम नेताओं में से कोई भी बिना कांग्रेस के सहयोग के प्रधानमंत्री बन सकता है भले ही कांग्रेस की तरफ से कभी अपना प्रधानमंत्री बनाने की बात नहीं की गई हो लेकिन सहयोगी दलों ने इसकी चर्चा किसी न किसी चुनाव से पूर्व अपनी महत्ता दिखाकर जरूर की गई है। हरियाणा चुनाव में जिस तरह आम आदमी पार्टी ने तेवर दिखाये तब सभी सहयोगी दल इस पर चुप्पी साधे रहे, किसी ने भी केजरीवाल को कुछ नहीं बोला लेकिन दिल्ली चुनाव में कांग्रेस के चुनाव मैदान में कूदते ही यह सभी नेता बारी—बारी से कांग्रेस को यह नसीहत देते दिखे कि उसे आप को ही समर्थन करना चाहिए। इंडिया गठबंधन का अस्तित्व कायम रहे या न रहे लेकिन कांग्रेस की तरफ से यह साफ कर दिया गया है कि कांग्रेस को पीछे धकेल कर आगे बढ़ने की मंशा से गठबंधन का कोई भी सहयोगी दल अगर काम करेगा यह उसे कतई भी मंजूर नहीं है। इसकी वजह भी साफ है कांग्रेस क्या कोई भी दल यह तो कतई भी नहीं चाहेगा कि वह अपना नुकसान कर किसी दूसरे का फायदा पहुंचायें। इंडिया गठबंधन जब बना था तब भाजपा के नेताओं को भी इससे होने वाले नुकसान का पूरा अंदाजा था प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा के नेता तो इसे इंडी गठबंधन नाम से संबोधित करते हुए यही कहते थे कि यह सत्ता के लिए किया गया अवसर वादियों का एक गठबंधन है। मगर इसके टूटने बिखरने की संभावनाओं के बीच भी यह गठबंधन अस्तित्व में बना रहा और लोकसभा चुनाव में भाजपा को इसने 60 सीटों पर हराकर एक बड़ा डेंट भी दिया लेकिन अब बीजेपी की हरियाणा, महाराष्ट्र के बाद दिल्ली के चुनाव में धमाकेदार जीत से वह नरेशन समाप्त हो चुका जो इस गठबंधन के कारण बना था। कांग्रेस सहित सभी इंडिया गठबंधन के दल यह अच्छी तरह से जानते हैं कि उनमें से कोई भी अपने अकेले के दम पर अब भाजपा को परास्त नहीं कर सकता है दिल्ली की इस जीत ने अब यह भी सुनिश्चित कर दिया है कि इंडिया गठबंधन का अस्तित्व भी बना नहीं रह सकता है। यह स्थिति भाजपा के लिए सबसे मुफीद स्थिति है। अब किसी भी बड़े से बड़े चुनाव या फिर छोटे से छोटे चुनाव में भाजपा को कोई नहीं हरा पाएगा। अर्थात जीत का मतलब भाजपा की गारंटी बन चुका है भाजपा को दिल्ली की सत्ता मिल गई यह उसके लिए बड़ी उपलब्धि जरूर है लेकिन अब इससे भी बड़ी उपलब्धि यह है कि वह लोकसभा चुनाव के झटके से उभर चुकी है और इसके साथ ही वह फिर अजेय भाजपा बन चुकी है।

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