दिल्ली में भाजपा

0
155


दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आए तो राजधानी की सड़कों पर खूब ढोल बजा, भाजपा मुख्यालय में खूब आतिशबाजी हुई और खूब मिठाइयां बंटी। जीत का जश्न तो मनाया जाना चाहिए था क्योंकि भाजपा के लिए इस जीत के मायने क्या है इसे भाजपा के नेता और कार्यकर्ता बखूबी जानते हैं। इस जीत के लिए उन्हें 27 साल लंबा इंतजार ही नहीं करना पड़ा है, बहुत संघर्ष भी करना पड़ा है। तब जाकर यह जश्न मनाने का मौका मिला है। 2014 में जब पूरा देश मोदी लहर में डूबा हुआ था, 2015 और उसके बाद 2020 के चुनाव में भी भाजपा को दिल्ली में यह सफलता नहीं मिल सकी लेकिन भाजपा इसे लेकर न निराश हुई न हताश हुई। यही कारण था कि 2025 के चुनाव में वह और दमखम के साथ ही यहां नहीं उतरी बल्कि उसने अपनी पूरी ताकत झोंक दी, जिसका परिणाम अब हमारे सामने है। बीते तीन चुनावों में शुन्य पर रहने वाली कांग्रेस की तरह भाजपा ने हथियार नहीं डाले और न आम आदमी पार्टी से हार मानी। रही बात आम आदमी पार्टी की और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल की, जो अन्ना हजारे के आंदोलन से निकलकर देश को जन सेवा और ईमानदार राजनीति का नया ककहरा सिखाने का सपना लेकर आंधी की तरह आए तो जरूर थे लेकिन इस हार के साथ उनकी विदाई भी तूफानी अंदाज में हो चुकी है। कहा जाता है कि ट्टकनक कनक ते सौ गुने, मादकता अधिकाय या खाये बौराये जग व पाये बौराये,। आज की तारीख में आम आदमी पार्टी के नेता भले ही इस हार के पीछे कुछ भी कारण तलाश रहे हो लेकिन सबसे कम समय में लगातार दिल्ली में दो बार मिली बड़ी जीत और पंजाब में मिली सफलता जिसने आप को राष्ट्रीय राजनीतिक दल की मान्यता दिलाई, ने आम आदमी पार्टी के नेताओं को राजनीतिक दिशा भ्रम की स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया। आप के नेताओं ने यह मान लिया था कि उन्हें अब दिल्ली में कोई नहीं हरा सकता भले ही वह जो चाहे करते रहें। राजनीति की कीचड़ को साफ करने के लिए अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के नेता जिस कीचड़ में उतरने की बात करते थे महज 10 सालों में वह खुद भी इस कीचड़ का हिस्सा बन गए और अब आप की इस कीचड़ में कमल खिल गया है। लोग जो ऐसा सोच रहे हैं कि कांग्रेस के कारण आप को इस हार का सामना करना पड़ा है तो यह कदाचित भी उचित नहीं है। इस हार के लिए आप के नेता खुद ही जिम्मेवार हैं। आप के इन नेताओं को इसकी क्या कीमत चुकानी पड़ेगी इसका भी उन्हें अंदाजा नहीं है। आप की दिल्ली में वापसी अब संभव भी होगी इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती। पंजाब में उनकी सरकार एक बार तो बन गई लेकिन क्या वह पंजाब में कायम रह सकेंगे यह सवाल भी इस हार के बाद साथ ही उठने लगा है। दिल्ली की जिस जनता ने पिछले दो चुनावों में आप और अरविंद केजरीवाल पर आंख मूंद कर भरोसा किया था उस भरोसे को अब वह कभी दोबारा हासिल नहीं कर सकेंगे। दिल्ली में मिली यह हार सिर्फ दिल्ली तक ही सीमित नहीं है बल्कि आम आदमी पार्टी के भविष्य और उसके अस्तित्व से जुड़ा हुआ एक ऐसा सवाल है जिसके परिणाम आने वाले समय में देखने को मिलेंगे। आप की इस हार से उन समर्थकों व आम आदमी के हौसलों को भी चोट पहुंची है जो आप को बड़े राजनीतिक बदलाव के परिपेक्ष में देखते थे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here