कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी के तल्ख तेवर और बदले हुए रूप से यह साफ झलक रहा है कि कांग्रेस में बड़े बदलाव की तैयारी चल रही है। यह दो स्तरों पर होता दिख रहा है। पहले स्तर है गठबंधन की गांठो को खोलने का और दूसरा स्तर है संगठनात्मक नवीनीकरण का। गठबंधन के नाम पर क्षेत्रीय दलों द्वारा जिस तरह का दबाव कांग्रेस पर बनाया जाता रहा है कांग्रेस अब उससे ऊब चुकी है। इसलिए उसने गठबंधन की गंाठो को खोल दिया है। इंडिया गठबंधन के टूटने बिखरने की जो खबरें बीते कुछ दिनों से आ रही हैं उसका सच यह है कि यह गठबंधन सही ही मायने में उसी दिन टूट गया था जब नीतीश कुमार व ममता और अखिलेश ने पाला बदल लिया था केजरीवाल जो आज दिल्ली के चुनाव में कांग्रेस को गठबंधन धर्म समझा रहे हैं उन्हें खुद यह सोचना चाहिए कि वह कांग्रेस के साथ कब और कहां गठबंधन धर्म निभा रहे थे। दिल्ली चुनाव में अब कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ रही है तो अरविंद को गठबंधन की याद आ रही है। 15 जनवरी को कांग्रेस अपना मुख्यालय 24 अकबर रोड से बदलकर नए मुख्यालय में शिफ्ट हो रही है। कांग्रेस ने अब इस सोच को पीछे छोड़ दिया है कि 2029 तक केंद्र में किसकी सरकार रहेगी कौन एनडीए के साथ चला जाएगा और कौन एनडीए से अलग होने जा रहा है। कांग्रेस ने अगले 4 साल तक सिर्फ खुद पर ध्यान केंद्रित करना है। पार्टी की सोच और विचारधारा के अनुकूल अपने कार्यक्रमों को राष्ट्रीय स्तर पर जारी रखते हुए केंद्र से लेकर राज्य स्तर तक अपना संगठनात्मक ढांचा कैसे मजबूत करना है? आने वाले समय में पार्टी अपने उन नेताओं जिन्हें भाजपा के स्लीपर सेल के तौर पर जाना जाता है या फिर उन्हें इस्तेमाल हुए कारतूसं जैसा माना जाता है उन सभी को नीतिगत फैसलों से किया जाना तय है। चाहे वह वेणुगोपाल हो या फिर कमलनाथ दिग्विजय सिंह और हुड्डा जैसे नेता जो सिर्फ अपने राजनीतिक वजूद को बनाए रखने के लिए कांग्रेस में बने हुए हैं और पार्टी के लिए उनकी कोई उपयोगिता नहीं है। देशभर में ऐसे सैकड़ो नेता है जो पार्टी पर बोझ बन चुके हैं पार्टी अब इनका बोझ नहीं ढोइगी। आने वाले दिनों में यह नेता हासिए से बाहर दिखाई देंगे। 2019 के चुनाव से पूर्व कांग्रेस यूपी और दक्षिण के कुछ राज्यों के अलावा बिहार जहां इसी साल के अंत में चुनाव होना है अपनी नई रणनीति के साथ ही आगे बढ़ने की तैयारी कर रही है। कांग्रेस ने यह तय कर लिया है कि वह अपनी प्यास बुझाने के लिए खुद ही कुआं खोदेगी वह किसी के पास नहीं जाएगी। बीते दिनों में कांग्रेस ने बहुत कुछ देख समझ लिया है। अब वह 2014 या 2019 वाली कांग्रेस बनकर नहीं रह सकती है। जब लोग और दल उसे पीछे और पीछे धकेलते थे। 2024 के चुनाव के बाद पार्टी ने अपनी ताकत को फिर से समझ लिया है।