भले ही 2024 के खंडित जनादेश के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए ने तीसरी बार केंद्र की सत्ता संभाली हो लेकिन सरकार के भविष्य को लेकर जो सवाल पहले दिन से खड़े थे वह आज भी जस के तस खड़े हैं। नववर्ष 2025 की शुरुआत भी इसी सवाल के साथ हुई है कि क्या 2025 में वर्तमान सरकार चली जाएगी? सवाल बेवजह इसलिए नहीं है क्योंकि जिन सहयोगियों के बूते पर यह सरकार अस्तित्व में बनी हुई है वह सहयोगी दल भी इस सरकार को अपने लिए सबसे बड़ा खतरा मान रहे हैं। अभी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा बिहार के प्रशासनिक अमले में व्यापक स्तर पर फेर बदल किया गया वहीं केंद्र सरकार द्वारा रातों—रात केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को बिहार का नया राज्यपाल बना दिया गया। बिहार व केंद्र सरकार के यह काम भाजपा और जदयू की रणनीतिक चालों के ही हिस्से हैं। बिहार में एक बार फिर नीतीश कुमार पलटी मारने और राजद के साथ मिलकर सरकार बनाने की खबरों के बीच केंद्र सरकार द्वारा बिहार में राष्ट्रपति शासन लागू करने की चर्चा भी आम हो गई। नीतीश कुमार दिल्ली आए तथा भाजपा नेताओं से बिना मिले ही वापस पटना लौट गए जबकि कांग्रेस नेताओं से उनकी मुलाकातों की बात सामने जरूर आई। माना जा रहा है कि अपने ऊपर आए आसन्न खतरे जिसमें भाजपा बिहार मे ंसत्ता में न आ पाने की स्थिति में राष्ट्रपति शासन लागू करने के जरिए तथा जदयू के कुछ सांसदों की तोड़फोड़ कर अपनी स्थिति को मजबूत करने और नीतीश को निष्प्रभावी करने के प्रयास किये जा रहे हैं। वहीं नीतीश कुमार ने भाजपा को हर हमले का जवाब देने का मन बना लिया है। उन्होंने साफ कर दिया है कि अगर केंद्र सरकार ने बिहार में राष्ट्रपति शासन लागू करने की कोशिश की तो केंद्र सरकार भी चली जाएगी। भले ही नीतीश कुमार के पास केंद्र सरकार को गिराने के लिए सांसदों की संख्या सीमित हो लेकिन 40 से अधिक सांसदों को इधर से उधर करने की क्षमता उनके पास है। वह भले ही किसी भी दल के हो या किसी भी राज्य के। केंद्र की सत्ता में बैठे भाजपा नेताओं को भी इस बात का अच्छे से आभास है। वर्तमान का सच यही है कि यह भाजपा नेता अपने और पार्टी के भावी भविष्य को लेकर इतने डरे सहमें हुए हैं कि उन्हें लगता है कि अगर एक बार सत्ता उनके हाथ से फिसली तो फिर उन्हें ढूंढे दिल्ली नहीं मिलने वाली है देश की राजधानी और बिहार दो ऐसे राज्य है जहां अपने उत्कृष्ट काल में भी भाजपा अपनी सरकार बनाने में नाकाम साबित हुई है। भले ही देश के तमाम राज्यों में उसने अपनी अतिवादी नीतियों के जरिए चुनी हुई सरकारों को गिराने और सत्ता पर काबिज होने में सफलता हासिल कर ली हो लेकिन बिहार व दिल्ली में उसे सत्ता अभी मिलती नहीं दिख रही है लेकिन इन राज्यों में कुछ तो ऐसा खास है ही जो भाजपा की हर रणनीति को नाकाम करने की कुव्वत रखते हैं। नीतीश और केजरीवाल भाजपा के हाथ आने वाले नहीं है। इसकी कसक भाजपा के अंदर लाजमी बनी रहेगी। दिल्ली में अगले माह तथा बिहार में नवंबर माह में चुनाव प्रस्तावित है। केंद्र सरकार के सामने अपनी सरकार को बचाए रखने की चुनौती के साथ इन राज्यों में अपना दबदबा बना पाने की भी चुनौती है लेकिन भाजपा का हर एक दांव उल्टा ही पड़ रहा है। बिहार में वह राज्यपाल बदलकर राष्ट्रपति शासन लागू कर पाएगी इसका क्या परिणाम होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा।





