देश संविधान से चलेगा या तानाशाही और मनमानी से? क्या सत्ता में बैठे लोग संविधान बदलना चाहते हैं यह सवाल बीते कई सालों से देश की राजनीति और देशवासियों के जहन को मथ रहे हैं। बीते कल सुप्रीम कोर्ट द्वारा दो अहम फैसले सुनाये गए। जिसमें से एक फैसला उस बुलडोजर न्याय पर था जिसे यूपी के सीएम योगी द्वारा ईजाद किया गया और इसे भाजपा के शासन की पहचान तक पहुंचा दिया गया। योगी के इस प्रयोग ने उन्हें न सिर्फ योगी से बाबा बुलडोजर बना दिया अपितु तमाम भाजपा नेता और भाजपा शासित राज्यों ने इसे अपनाना शुरू कर दिया। किसी भी मामले के आरोपी के घर को बुलडोजर से जमीदोज किये जाने की इस कार्यवाही में न तो सत्ता में नेताओं को और न उन चाटुकार अधिकारियों को कुछ गलत और असंवैधानिक नजर आया जो कल तक इस कृत्य को धड़ल्ले से अंजाम देते रहे हैं। लेकिन अब वह आगे ऐसा नहीं कर सकेंगे। देश की सर्वाेच्च अदालत द्वारा इसे असंवैधानिक ठहराते हुए सभी राज्य सरकारों को 15 बिंदुओं वाली गाइडलाइन थमा दी गई है। अदालत के इस फैसले में बड़े ही सख्त लहजे में कहा गया है कि शासन—प्रशासन में बैठे लोग कोई जज नहीं है। जो किसी भी व्यक्ति के अपराधी साबित होने न होने से पहले ही उसका घर बुलडोजर से तोड़ डालें। बुलडोजर की कार्यवाही वह कब कैसे और किन परिस्थितियों में कर सकते हैं अब इसके नियम कानून तय कर दिए गए हैं। जिनके चलते अब बुलडोजर से किसी का आशियाना गिराना आसान नहीं होगा। इसके बावजूद भी अगर वह ऐसा करते हैं तो उन पर मुकदमा चलाया जाएगा। नुकसान का उन्हें मुआवजा भी देना पड़ेगा और सजा भी होगी। दरअसल सरकार में बैठे लोगों द्वारा बुलडोजर को भय का प्रतीक बना कर अपने राजनीतिक हित साधने व वोटो को सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण का प्रतीक बना लिया गया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उस तबके को तो राहत मिलेगी ही जिसे बुलडोजर के माध्यम से निशाना बनाया जाता है। इसके साथ ही भाजपा की धार्मिक व सांप्रदायिकता की राजनीति को भी इससे करारा झटका लगा है। न्यायालय का दूसरा फैसला उन राजनीतिक दलों के खिलाफ आया है जो दूसरों की मेहनत और उनके चुनाव चिन्ह हड़प कर अपनी राजनीति करने में लगे हुए हैं। एनसीपी से अलग होकर शिंदे की सरकार के साथ खड़े होने वाले शरद पवार के भतीजे अजित पवार जिन्हें महाराष्ट्र की राजनीति में दादा कहा जाता है। उन्हें कल सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाते हुए कहा है कि अगर दम नहीं है तो फिर चुनाव क्यों लड़ते हो घर बैठो। अजीत पवार अनधिकृत रूप से पार्टी के चुनाव चिन्ह व शरद पवार का फोटो इस्तेमाल कर रहे थे, जिस पर शरद पवार की एनसीपी ने आपत्ति जताई थी खैर अब वह आगे ऐसा नहीं कर सकेंगे। इसके साथ ही शिंदे वाली शिवसेना जो बालासाहेब ठाकरे का फोटो व पार्टी के चुनाव चिन्ह पर कब्जा किए बैठे हैं उसकी भी आंखें खुल जाएगी। दरअसल बीते एक दशक से देश की संवैधानिक व्यवस्था को कैसे छिन्न—भिन्न किया गया है इसके तमाम प्रमाण अब न्यायालय के फैसलों से लोगों को समझ आ रहे है। बात चाहे इलेक्टोरल बांड की हो या फिर चंडीगढ़ मेयर चुनाव की जिसे कोर्ट ने असवैधानिक ठहरा कर रद्द किया था। चुनाव आयोग सहित सभी संवैधानिक संस्थाओं पर सरकार ने जिस तरह शिकंजा कसकर संवैधानिक व्यवस्थाओं को ध्वस्त करने का काम किया है वह संविधान बदलना न सही लेकिन संविधान को समाप्त करने वाला जरूर रहा है। जिसके कारण अब देश में संविधान बचाओ ही देश की राजनीति का सबसे अहम मुद्दा बनकर रह गया है।




