कैसे बचेगा देश का आम आदमी?

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कमरतोड़ महंगाई और रिकॉर्ड तोड़ भ्रष्टाचार तथा बेरोजगारी ने क्या देश को किसी गंभीर संकट में फंसा दिया है? यह कोई हवा हवाई बातें नहीं है सरकारी आंकड़े खुद इस बात की गवाही दे रहे हैं कि महंगाई—बेरोजगारी और भ्रष्टाचार वर्तमान समय में अपने सबसे उच्च स्तर को पार कर चुके हैं। खास बात यह है कि सत्ता में बैठे लोग इस सबके बीच अब आत्मनिर्भर भारत और विकसित भारत का सपना परोस रहे हैं वह भूखे व्यक्ति को भजन करने की नसीहत देने जैसा ही लग रहा है। बीते 10 साल पहले जब वर्तमान सरकार सत्ता में आई तो उसने लोगों को अच्छे दिन आने का भरोसा देते हुए विदेश में जमा काला धन वापस लाने तथा हर गरीब के खाते में 15 लाख रुपए जमा कराने का वायदा किया था क्या मजेदार बात है कि देश की जनता ने जिसे उसका भोलापन कहा जाए या मूर्खता उस वायदे पर भरोसा कर जिसे सत्ता में आने का मौका दिया उसने सत्ता में आने के बाद उसे चुनावी शगुफा बताकर खारिज कर दिया गया। बात चाहे किसानों की आय दो गुना करने की हो या फिर 2 करोड़ नौकरियां हर साल देने की, वायदों की लिस्ट अब तक इतनी लंबी हो चुकी है कि अब उस पर जनता का विश्वास कर पाना संभव नहीं रहा है। सत्ता में बैठे लोगों द्वारा बीते 10 सालों में विदेश नीति से लेकर अन्य तमाम जो भी नीतियां बनाई या लागू की गई है उन सभी को लेकर अब भारी बवाल पूरे देश में मचा हुआ है। कनाडा का भारत को दुश्मन देश घोषित किए जाने से लेकर देश के संसाधनों की दोनों हाथों से की गई लूट के तमाम केसो की फाइलें खुलती जा रही है। सेवी की चेयरपर्सन माधवी वुच अब संसदीय समिति के सामने पेश तक नहीं हो रही है जिन्होंने शेयर बाजार को पूंजी पतियों को लाभ कमाने और अपनी कमाई का जरिया बनाया। बात यही जाकर नहीं रुकती है। सरकार द्वारा लाये गए इलेक्टोरल बांड के सच ने पूरे देश को ही हिला कर रख दिया। भला हो देश के सर्वाेच्च न्यायालय का जिसने इसे असंवैधानिक ठहराते हुए रद्द कर दिया गया लेकिन इसके जरिए सुरक्षा एजेंसियों से डरा धमका कर जो लूट हो गई उसका क्या? वह तो हो ही गई। झूठ व फरेब की राजनीति के साथ जब धर्म की राजनीति भी बेअसर होने लगी तो देश की स्वायत्तता धारी संस्थाओं को ही सरकार द्वारा अपने राजनीति में टिके रहने का हथियार बना लिया गया। चुनाव आयोग इसकी ताजा मिसाल है। जहां किसी भी दल और नेता की कोई शिकायत नहीं सुनी जाती है और किसी के पास भी चुनाव आयुक्त को हटाने की ताकत नहीं है। चुनावों में क्या कुछ हो रहा है इसका एक उदाहरण चंडीगढ़ का मेयर चुनाव था जिसके बारे में पूरा देश जानता है कि सुप्रीम कोर्ट ने कैसे इसे लोकतंत्र की हत्या बताते हुए चुनाव नतीजे को ही पलट दिया था। देश की अर्थव्यवस्था की बात करें तो वर्तमान में डॉलर के मुकाबले रुपया गिरावट का रिकॉर्ड बना चुका है। हंगर सूची में भारत धीरे—धीरे वहां पहुंच चुका है जहां से पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देश भी पीछे छूट जाते हैं। ऐसी स्थिति में अब हर किसी के मन में यह सवाल है कि देश कहां जा रहा है उसके ऊपर से यह अब डर और खतरा बनकर मंडरा रहा है कि बटोगे तो कटोगे। देश भले ही बंटने और कटने से बच जाए लेकिन इस देश का वह आम आदमी मिटने से शायद ही बच पाएगा जो और अधिक गरीब होता जा रहा है।

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