मानव समाज पर कलंक

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क्या हमारे समाज की मानवीय संवेदनाएं मर चुकी हैं या फिर हम जिस शिक्षित और सभ्य समाज में रह रहे हैं वह मानसिक रूप से एक बीमार समाज है? यह सवाल हम इसलिए उठा रहे हैं क्योंकि वर्तमान दौर में महिला अत्याचारों की जिस तरह की खबरें आए दिन आ रही हैं वह सिर्फ दिल दहला देने वाली ही नहीं है अपितु मानव समाज पर किसी कलंक से कम नहीं है। महिलाओं के साथ छेड़छाड़, अपहरण और गैंगरेप तथा हत्याओं की तमाम खबरों से हम और आप वाकिफ है और अखबारों तथा टीवी चैनलों तथा अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मो पर ऐसी खबरों की भरमार आपको मिल जाएगी। बात चाहे कोलकाता महिला चिकित्सक हत्या और रेप की हो या फिर अभी हाल ही में उत्तराखंड में एक महिला नर्स की हत्या व रेप की ऐसी तमाम घटनाओं की गिनती यहंा हम नहीं करेंगे। बल्कि इस तरह के अपराधों के प्रति समाज के उस रवैये की करेंगे जो बीते समय में सामने आए हैं। अभी उज्जैन से एक ऐसी तस्वीर सामने आई जिसे देखकर किसी का भी सिर शर्म से झुक जाए और खून खौलने लगे। दिनदहाड़े एक व्यक्ति सड़क किनारे एक कूड़ा बीनने वाली महिला के साथ बलात्कार करता है। सड़क पर लोग आ—जा रहे हैं लेकिन सैकड़ो लोगों में से कोई एक भी व्यक्ति उक्त घटना का विरोध करने अथवा पीड़िता को बचाने के लिए आगे नहीं आता है। ऐसा तो हो ही नहीं सकता है कि सड़क से गुजरने वाले किसी भी व्यक्ति की नजर इस पर न पड़ी हो। बात यहीं खत्म नहीं हो जाती है जिन लोगों की इस पर नजर पड़ी उनमें से कुछ लोगों को मोबाइल से इसका वीडियो बनाते भी देखा गया। सवाल यह है कि क्या हम एक ऐसे मुर्दा समाज में रह रहे हैं जहां कहीं भी किसी के भी साथ कुछ भी होता रहे हमें उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इसी उज्जैन नगरी में अभी कुछ समय पहले एक अन्य ऐसी ही दिल दहला देने वाली घटना देश भर के लोगों ने देखी थी जब एक 12 साल की नाबालिक लड़की बदहवास स्थिति में गलियों में घूम रही थी। वह निर्वस्त्र थी, लहू लुहान थी लोगों के घरों के दरवाजे पीट—पीट कर मदद की गुहार लगा रही थी, लेकिन कोई भी उसकी मदद के लिए सामने नहीं आया था, किसी ने अगर दरवाजा खोला भी तो देख कर तुरंत बंद कर लिया वह पानी पानी की गुहार लगाती रही लेकिन उसे दो घूंट पानी तक पिलाना उचित नहीं समझा। सामूहिक बलात्कार की शिकार इस लड़की की सूचना किसी ने पुलिस को दी तब जाकर वह अस्पताल तक पहुंच सकी। 6.7 किलोमीटर घूम—घूम कर मदद की गुहार लगाने वाली इस लड़की को इस सभ्य समाज में एक भी मददगार नहीं मिला था। एक समय 2012 में जब निर्भया कांड सामने आया था तो देश भर के लोग दिल्ली की तरफ दौड़ पड़े थे घटना के विरोध में तीखी जनप्रतिक्रिया का नतीजा ही था की सारी सरकार हिल गई थी निर्भया को इलाज के लिए सिंगापुर भेजे जाने से लेकर आरोपियों को फांसी के फंदे पर लटकाए जाने और निर्भया के नाम से फंड की स्थापना तक सब कुछ हुआ था। फिर बीते 12 सालों में ऐसा क्या हुआ कि आज सारे समाज की संवेदनाएं शून्य हो गई है और खून पानी हो गया है। मणिपुर जैसी घटनाओं ने किसी को भी विचलित नहीं किया। और न चार—चार पांच—पांच साल की बच्चियों के साथ छेड़छाड़ और रेप जैसी घटनाओं का सत्ता से लेकर समाज तक किसी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। उस समाज जिसमें नारियों की पूजा होती आई है अब सिर्फ नारी बंधन की बात तो की जाती है लेकिन जब उनकी सुरक्षा का सवाल आता है तो सब मुंह फेर लेते हैं। निश्चित तौर पर यह स्थिति किसी भी देश और समाज के लिए शुभ संकेत नहीं है इस जंगलीपन और वहसियत के नतीजे आने वाले समय में अत्यंत ही गंभीर रहेंगे।

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