कश्मीर में बगावत के बाद अब हरियाणा में भी भाजपा की पहली प्रत्याशी सूची जारी होने के साथ ही भारी बगावत के स्वर सुनाई दे रहे हैं एक दर्जन से भी अधिक पूर्व मंत्री और विधायकों ने अपने टिकट काटे जाने या फिर चुनाव क्षेत्र बदले जाने के कारण पार्टी छोड़ने के साथ ही निर्दलीय चुनाव लड़ने या फिर कांग्रेस के साथ जाने का ऐलान कर दिया है। भाजपा ने जो 67 उम्मीदवारों की सूची जारी की है उसमें कई विधायक और मंत्री ऐसे हैं जो यह आरोप लगा रहे हैं कि वह 20 साल से पार्टी के लिए काम कर रहे हैं लेकिन उनकी अनदेखी कर पार्टी ऐसे लोगों को टिकट दे रही है जो दो—चार दिन पहले किसी दूसरी पार्टी से भाजपा में आए हैं। भले ही यह भाजपा में पहली बार नहीं हो रहा है बीते एक दशक से भाजपा ने इसी नीति पर काम किया है, विपक्षी दलों को कमजोर करने के लिए भाजपा ने यह फार्मूला अपनाया था कि भाजपा में आओ और टिकट पाओ, यही नहीं कि सिर्फ टिकट पाओ बल्कि जीत की गारंटी के साथ टिकट पाओ। विपक्ष विहीन सरकार के मंसूबे की सरकार बनाने के लिए यह जो फार्मूला भाजपा द्वारा ढूंढा गया था इस फार्मूले में वह काफी हद तक सफल भी होती दिख रही है। लोकसभा चुनाव से पूर्व अगर भाजपा ने अबकी बार 400 पार का नारा दिया था और चुनाव के बाद विपक्ष को दर्शक दीर्घा में बैठने की चुनौती दी गई थी वह बेवजह नहीं थी। लेकिन अब लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद परिदृश्य पूरी तरह से बदल चुका है। भाजपा के कर्मठ और अनुशासित नेता और कार्यकर्ता अपने शीर्ष नेतृत्व के किसी फैसले का विरोध करने की कभी हिम्मत नहीं जुटा पाते थे अब उन्हें भी लगने लगा है कि घुटन की हदें पार हो चुकी है तथा जीत की गारंटी का जो गुब्बारा था उसकी हवा निकल चुकी है। यही कारण है कि भाजपा के कार्यकर्ता और नेता अब खुली बगावत पर उतर आए हैं। भाजपा को अब सामने एक मजबूत विपक्ष की चुनौती खड़ी दिखाई दे रही है तो वहीं पार्टी के आंतरिक विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है। खास बात यह है कि अब उसका ही वार उस पर उल्टा पड़ रहा है। जिस हथियार से भाजपा ने विपक्ष को धराशाही किया वह हथियार अब बिना किसी प्रयास के विपक्ष के हाथ लग गया है। एक समय था जब कांग्रेस जो देश की सबसे बड़ी और पुरानी राजनीतिक पार्टी थी उसके नेता उसका साथ छोड़कर भाग रहे थे आज ठीक वैसे ही हालात भाजपा के सामने भी पैदा हो चुके हैं। भाजपा के नेताओं को अब भाजपा में अपना कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा है भले ही वह विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने और सबसे ज्यादा सदस्य संख्या वाली पार्टी क्यों न हो? एक कहावत आपने जरूर सुनी होगी कि उगते सूरज को सभी सलाम करते हैं यही राजनीति में चरितार्थ होता है। जो सत्ता में होता है बने रहने की क्षमता रखता है उसके साथ रहकर ही वह सत्ता की मलाई खा सकते हैं। इस भगदड़ और बगावत की जड़ में सबसे मूल कारण भी यही है। राजनीतिक पंडितों का तो यहां तक कहना है कि कल जो कांग्रेस के नेता कांग्रेस की तमाम खामियां गिनाकर भाजपा के साथ चले गए थे वह अब कांग्रेस में वापसी के रास्ते तलाश रहे हैं। भाजपा जब 2014 में सत्ता में आई थी तो उसके बाद कांग्रेस मुक्त भारत बनाने की बात कही गयी थी लेकिन वह भाजपा को कांग्रेस युक्त बनाने में ही सफल हो सकी। अब यह कांग्रेस युक्त भाजपा ही भाजपा के लिए सबसे बड़ी परेशानी का सबब बन चुकी है।