बीते कुछ महीनो में देश की राजनीति में एक के बाद एक ऐसी अनेक घटनाएं घटित हुई है जो यह बताने और समझने समझाने के लिए काफी है कि इस देश का लोकतंत्र इतना मजबूत और सशक्त है कि कोई भी ताकत इसकी जड़ों को नही हिला सकती है। तथाकथित शराब घोटाले में मनीलार्डिंग के आरोपों में 5 महीने से जेल में बंद बीआरएस नेता के. कविता को सुप्रीम कोर्ट से मिली जमानत से यह सिद्ध हो गया है कि सत्ता और केंद्रीय जांच एजेंसियों को कानूनों का दुरुपयोग करने का कोई अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा ईडी और सीबीआई को एक बार फिर से कड़ी फटकार लगाते हुए कहा गया है कि आप सिर्फ आरोपों के आधार पर किसी को जेल की सजा नहीं दे सकते हैं। जेल से ज्यादा अहम और महत्वपूर्ण बेल का अधिकार है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ द्वारा मनीष सिसोदिया, संजय सिंह को पहले जमानत दिए जाने के बाद अब के. कविता को भी जमानत मिल चुकी है, जबकि अरविंद केजरीवाल अभी भी जेल में है। मनीष 17 माह व संजय को 7 माह तथा के. कविता को पांच माह जेल में रहना पड़ा जबकि ईडी और सीबीआई न तो उनके यहां से कुछ बरामद कर सकी और न कोई ठोस साक्ष्य अदालत में पेश कर सकी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों को भी इसलिए फटकारा गया था कि उन्होंने बेल के अधिकार की अनदेखी की। अब अरविंद केजरीवाल भी जल्द जमानत पर बाहर आ जाएंगे इसमें कोई संदेह नहीं है। यह मनी लाड्रिंग क्या है? तथा इसकी जरूरत क्यों पड़ी और इसका दुरुपयोग कैसे किया जा रहा है इसे समझने के लिए इसका इतिहास जानना जरूरी है। 1988 में अंतरराष्ट्रीय ड्रग माफिया पर नकेल कसने के लिए अमेरिका के नेतृत्व में पीएमएलए कानून लाया गया था जिस पर भारत सहित सभी देशों ने हस्ताक्षर किए। इस कानून की धारा 45 इतनी सख्त थी कि इसमें जमानत मिलना असंभव होता था मगर इसके खिलाफ जब लोग सुप्रीम कोर्ट गए तो इसे असंवैधानिक ठहरा दिया गया लेकिन इसके बाद केंद्र सरकार ने इसे चोर दरवाजे से एंट्री दे दी। भाजपा जब कांग्रेस मुक्त भारत और विपक्ष विहीन सरकार का ताना बाना बुनने में लगी थी तब उसे अपने विरोधियों पर शिकंजा कसने का यह एक सशक्त हथियार लगने लगा। ईडी और सीबीआई को साथ लेकर काले धन और मनी लाडिं्रग के आरोप लगाकर जब देश के दर्जनों नेताओं को बिना गवाह सबूतों के सालों तक जेल में पहुंचाने का काम शुरू हुआ तो फिर वह सब होना ही था जो आज हम देख रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और दलीलों के बाद सरकार, तथा ईडी और सीबीआई के षडयंत्रों का भंडा अब फूट चुका है। यह अजीब बात है कि आरोपियों को सरकारी गवाह बनाकर उनसे किसी का नाम घोटाले में संलिप्त होने की बात कराओ और फिर बिना किसी गवाह सबूत के अनिश्चितकाल के लिए जेल भिजवा दो। लेकिन अब यह खेल आगे नहीं चल सकेगा। देश की जनता और न्यायपालिका की सख्ती ने यह साबित कर दिया है कि तिकड़म और षडयंत्रों के सहारे आप लोकतंत्र को न हरा सकते हैं न थका सकते हैं। मिथ्या प्रचार और भ्रष्टाचारियों को जेल भेजने के दावों की पोल अब खुल चुकी है। जिन नेताओं को जेल भेजा गया वह बाहर ही नहीं आ रहे हैं उन पर कोई मुकदमा तक चल पाएगा अब इसकी संभावनाएं लगभग समाप्त हो चुकी है यह देश के लोकतंत्र की एक बड़ी जीत है।