सपनों की राजधानी गैरसैण

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जी हां! राज्य आंदोलनकारियों और शहीदों के सपनों की राजधानी गैरसैण। अलग राज्य के लिए आंदोलन अपने चरम पर था उस समय सिर्फ आंदोलनकारी ही नहीं प्रदेश के लोगों ने गैरसैंण को नए राज्य की राजधानी घोषित कर दिया था। पहाड़ की राजधानी पहाड़ में बने जिससे हर क्षेत्र के लोगों की राजधानी तक पहुंच आसान हो सके लेकिन राज्य गठन के 23—24 साल बाद भी गैरसैंण का राज्य की राजधानी बनने का सपना पूरा होना तो दूर राज्य की एक अद्द स्थाई राजधानी भी नहीं बनाई जा सकी है। राज्य गठन के 13 साल बाद तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने गैरसैंण में राजधानी के लिए यहां भूमि पूजन किया तो प्रदेश वासियों को एक बार फिर यह उम्मीद जरूर दिखाई दी कि शायद उनका सपना अब पूरा होने वाला है लेकिन यहां 200 करोड़ की लागत से विधान सभा भवन निर्माण और सांकेतिक विधानसभा सत्रों की शुरुआत के बावजूद भी बीते 10 सालों में काम इससे आगे नहीं बढ़ सका है। यहां आयोजित किए जाने वाले विधानसभा सत्रों का हम सांकेतिक इसलिए भी समझते हैं क्योंकि यहां सत्ता में बैठे लोग मन मार कर ही साल में तीन चार दिन के लिए जाते हैं। कई बार तो साल में एक बार भी यहां सत्र का आयोजन नहीं किया जा सका है। वर्तमान मानसून सत्र की बात करें तो लंबे समय से सरकार पर यहां सत्र का आयोजन न करने को लेकर गैरसैंण की उपेक्षा का आरोप लगाया जा रहा था बीते साल फरवरी—मार्च में यहां सत्र के बाद अब मानसून सत्र का आयोजन इसलिए भी मजबूरी हो गया क्योंकि दून विधानसभा में भवन की मरम्मत का काम चल रहा है। विधायक और मंत्री कई बार यहां अधिक सर्दी का हवाला देकर सत्र समापन की तिथि से पूर्व ही सत्र समापन कर चले आए हैं। 10 सालों में 8—9 बार आयोजित होने वाले इस सत्र में काम भी नाम मात्र का ही होता रहा है। 2020 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी जरूर घोषित कर दिया गया लेकिन राजधानी के लिए अब स्थापना कार्यों को पूरा करने में पिछली सरकारों द्वारा कोई भी रुचि नहीं दिखाई गई है। दरअसल पहाड़ के नेताओं के लिए भी गैरसैंण राजनीति का मुद्दा बनकर रह गया है। राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी हो या फिर स्थाई राजधानी हो इसे लेकर कांग्रेस और भाजपा ने सालों साल तक कोई फैसला नहीं किया। बीते 2 साल से पूर्व सीएम हरीश रावत गैरसैंण की उपेक्षा का आरोप भाजपा पर लगाकर यहां धरने प्रदर्शन तो कर रहे हैं तथा भाजपा द्वारा गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने को वह श्रेय लेने की राजनीति भी बताकर भाजपा को घेर रहे हैं। लेकिन सवाल यह है जब वह खुद सीएम थे या कांग्रेस की सरकार थी तब कांग्रेस ने गैरसैंण को स्थाई राजधानी क्यों घोषित नहीं किया। गैरसैंण के ही नहीं प्रदेश के लोग सरकारों के इस रवैये से भारी नाराज हैं। वह चाहते हैं कि गैरसैंण को अलग जिला बनाया जाए और गैरसैंण को राज्य की स्थाई राजधानी भी बनाया जाए? लेकिन उनको यह सपना कभी पूरा होगा भी इसकी कोई उम्मीद दूर—दूर तक भी दिखाई नहीं देती है। यह अत्यंत आश्चर्यजनक बात है कि राज्य गठन के 24 साल बाद भी उत्तराखंड को एक अद्द स्थाई राजधानी नहीं मिल सकी है और अस्थाई राजधानी दून से ही राज राज चल रहा है।

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