चार दिन पहले अतिवृष्टि और भूस्खलन के कारण केदारनाथ हाईवे और पैदल मार्ग के बंद होने से हजारों की संख्या में यहां फंसे यात्रियों को अभी तक नहीं निकाला जा सका है। राज्य का आपदा प्रबंधन विभाग, जिला प्रशासन से लेकर एनडीआरफ, एसडीआरएफ की टीमों के अलावा अब वायु सेना भी यात्रियों के रेस्क्यू अभियान में जुटी हुई है। चार दिनों से यात्रा मार्ग में फंसे इन यात्रियों में मासूम बच्चों से लेकर महिलाएं और उम्रदराज लोग भी शामिल हैं। यह स्वाभाविक है कि इन यात्रियों तक भोजन, पानी और दवाएं जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराना आसान काम नहीं है। ऐसी स्थिति में उन्हें किस तरह की समस्याओं से जूझना पड़ रहा होगा और जीवन रक्षा की कैसी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है इसका अनुमान लगा पाना भी मुश्किल है। पहाड़ के उबड़-खाबड़ रास्तों और नदियों के उफान तथा पहाड़ों से पत्थरों की बरसात के बाद अपनी जान हथेली पर रखकर बाहर आने के प्रयासों में जुटे यह यात्री खुद ही इस समस्या की गंभीरता को समझ सकते हैं। ऊपर से खराब मौसम की मार, अब तक भले ही हजारों लोगों को रेस्क्यू कर इस आपदा से बाहर लाया जा चुका हो लेकिन अभी भी बड़ी संख्या में लोग केदार धाम और अन्य कई स्थानों पर फंसे हुए हैं। जिन्हें सरकारी रेस्क्यू की मदद से ही बाहर निकाला जा सकता है। क्योंकि पैदल मार्ग और हाईवे को इतना अधिक नुकसान हो चुका है कि उन्हें दुरुस्त करने में और आने-जाने योग्य बनाने में अभी कई दिनों का समय लग सकता है। जहां तक प्राकृतिक आपदा की बात है वह सब कुछ ठीक है। लेकिन जितनी बड़ी संख्या में केदारनाथ सहित अन्य तमाम धामो में यात्री पहुंचते हैं उसे हिसाब से इन यात्रियों की व्यवस्था और सुरक्षा की इंतजाम भी नहीं किए जाते हैं जिसके कारण ऐसी स्थितियां उपस्थित होती है। इस साल भी हमने देखा कि कई कई लाख यात्री एक दिन में इन धामो में पहुंच गए और व्यवस्थाएं डांवाडोल हो गई। शासन प्रशासन यह आंकड़े जारी करते हुए गर्व अनुभव करता है कि इतने लाख यात्री एक माह या एक यात्रा सीजन में आए लेकिन क्या वह इन यात्रियों को सुगम और सुरक्षित यात्रा करा भी पाता है यह सबसे अहम सवाल है। अब जब हालत खराब हो गए हैं तो केदारनाथ यात्रा को स्थगित करना पड़ा है जब मौसम विभाग लगातार शासन प्रशासन को सतर्क कर रहा था तो उसके द्वारा यात्रा को पहले ही क्यों नहीं रोका गया। गनीमत है कि जो भी 4-6 हजार यात्री इस आपदा के कारण 4 दिनों से फंसे हैं उन्हें दो-चार दिनों में सुरक्षित बाहर निकाल लिया जाए लेकिन अगर इन यात्रियों की संख्या 10 15 हजार होती तब प्रशासन और शासन क्या करता? शासन प्रशासन हर बार इस यात्रा के लिए एस ओ पी जारी करता है। तथा इसमें कई कई बार बदलाव भी करता है लेकिन इस एस ओ पी का कड़ाई से पालन कराने में वह हमेशा ही नाकाम साबित है। जिसके कारण यात्रियों को तो अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना ही पड़ता है इसके साथ ही राज्य की छवि को भी भारी नुकसान होता हैं । यहां आने वाले यात्री अव्यवस्थाओं के कारण राज्य की खराब छवि लेकर लौटते हैं। कपाट खुलने के समय भी गंगोत्री पैदल मार्ग पर जिस तरह का जाम देखा गया था उसे यह लोग कभी नहीं भूल पाएंगे जो इस जाम में फंसे थे। दरअसल इस तरह की समस्याओं से और आपदाओं से कभी कोई सबक लेने की जरूरत ही नहीं समझी गई है यही कारण है कि इनकी पुनर्वत्ति को भी आज तक रोका नहीं जा सका है केदारनाथ में फंसे इन यात्रियों को जल्द व सकुशल बाहर निकाल लिया जाए हम बाबा से यही प्रार्थना कर सकते हैं।