असाधारण—घोषणा पत्र

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बीते कल कांग्रेस द्वारा न्याय पत्र के नाम से जो अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी किया गया है वह देश के स्वतंत्रता के इतिहास में पहला ऐसा घोषणा पत्र है जो सिर्फ इस बात की गारंटी नहीं देता है कि अगर कांग्रेस की सरकार बनी तो वह जनता के लिए क्या—क्या करेगी अपितु संवैधानिक व्यवस्थाओं और संसद की कार्यप्रणाली से लेकर मीडिया की स्वायत्तता और न्यायपालिका तक में क्या बदलाव लाएगा इसका एक विस्तृत खाका खींचा गया है। इस न्याय पत्र को पढ़कर हर किसी को एक बार भी यह लग सकता है कि क्या वैसा किया जाना संभव है? लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष खड़गें के बयान पर गौर करें तो उनका कहना है कि इसमें उन तमाम मुद्दों को रखा गया है जो किया जाना संभव है। राहुल गांधी का कहना है कि यह हमारा घोषणा पत्र नहीं हमने तो सिर्फ इसे लिखा है यह देश की आम जनता का घोषणा पत्र है। उन्होंने अपनी न्याय यात्रा के दौरान लोगों से मिलकर जो सुना और महसूस किया उसका दस्तावेज है। इसलिए इसे हम असाधारण घोषणा पत्र कह रहे हैं। इसमें मीडिया की आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बनाए रखने का वायदा किया गया और निजता के अधिकार को संरक्षित रखने की बात ही नहीं की गई है अपितु इसके लिए क्या किया जाएगा इसका भी उल्लेख है। न्यायपालिका को और सशक्त तथा समृद्ध बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की दो अलग—अलग शाखाओं की व्यवस्था करने जिसमें से एक संवैधानिक और दूसरा अदालतीय मामलों की सुनवाई करेगी तथा हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्तियों के लिए राष्ट्रीय न्यायपालिका आयोग का गठन सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट की सहमति से करने का वायदा किया गया। देश की संसद भी सत्ता पक्ष की मनमानी से न चले जैसे कि अब तक चलती रही इसमें बदलाव की बात का उल्लेख भी किया गया है। लोकसभा के अध्यक्ष निष्पक्ष बनाने के लिए सत्तारूढ़ दल से उसके इस्तीफे की व्यवस्था और 1 साल में 100 दिन संसद चलने की अनिवार्य व्यवस्था करने का वायदा किया गया है। जिसमें एक दिन विपक्ष के सवालों के लिए भी रिजर्व होगा। निश्चित तौर पर अगर ऐसा कुछ होता है तो यह संसदीय व्यवस्था में ऐतिहासिक बदलाव ही होगा। यह घोषणा पत्र सिर्फ यह कहने भर के लिए नहीं लाया गया है। महिलाओं को क्या—क्या दिया जाएगा कितना आरक्षण होगा गरीब महिलाओं को एक लाख सालाना दिया जाएगा या 30 लाख युवाओं को सरकारी नौकरियां दी जाएगी या फिर अग्नि वीर योजना को बदला जाएगा या किसानों के कर्ज माफ किए जाएंगे और उनके लिएं न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी कानून लाया जाएगा। अथवा नीति आयोग को फिर से योजना आयोग में बदला जाएगा। इस घोषणा पत्र में व्यवस्थाओं में बदलाव की जो गारंटी दी गई है वह इस घोषणा पत्र को अब तक के तमाम घोषणा पत्रों से अलग बनाता है, वह भी अत्यंत व्यापक स्तर पर। चुनावी घोषणा पत्रों को आमतौर पर गंभीरता से नहीं लिया जाता है लेकिन कांग्रेस ने सत्तारूढ़ भाजपा से पहले ही अपना घोषणा पत्र जारी कर एक लंबी लकीर खींच दी है वह भी इस दावे के साथ कि उसने जो कहा है उसे करके दिखाएंगे जनता इस घोषणा पत्र को कैसे लेती है और भाजपा इसके जवाब में कैसा घोषणा पत्र लाती है इन सवालों का जवाब तो आने वाला समय ही देगा लेकिन कांग्रेस के इस घोषणा पत्र को उसका एक बड़ा साहसिक कदम जरूर माना जा सकता है।

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