देश की 18वीं लोकसभा के लिए आज चौथे चरण की 96 सीटों के लिए मतदान हो रहा है। इससे पूर्व तीन चरण के मतदान में 283 सीटों के लिए मतदान हो चुका है। इसके बाद अंतिम तीन चरण में 163 सीटों के लिए चुनाव ही शेष बचेगा। इसमें कोई संदेह नहीं है कि लोकसभा का यह वर्तमान चुनाव कई मामलों में अब तक हुए तमाम चुनावों से अलग तरह का चुनाव है। इस चुनाव में मंडल—कमंडल जैसे दौर वाली कोई लहर नहीं है। और न ही किसी राजनीतिक चेहरे पर यह चुनाव लड़ा जा रहा है। भले ही भाजपा ने पिछले दो चुनाव मोदी के चेहरे पर बखूबी लड़े और जीते हो लेकिन इस चुनाव में मोदी के मैजिक जैसी कोई बात नहीं दिख रही है। यह कहना भी अनुचित नहीं होगा कि मोदी और मोदी का मैजिक एक मजाक बन चुका है। इस चुनाव के दौरान लोग उनकी बातों को गंभीरता से सुनना तो दूर बल्कि सोशल मीडिया पर वह जूम कर ट्रोल कर रहे हैं। हमें याद है कि 2014 के चुनाव में जब अच्छे दिन आने और काले धन को वापस लाने तथा गरीबों के खातों में पैसे डालने की बात कही जा रही थी तब कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने मोदी को फेंकू कहा था। दिग्विजय सिंह की यह बात उस समय भले ही देश के लोगों को अच्छी न लगी हो लेकिन उनके 10 साल के कार्यकाल में उनकी कथनी और करनी ने खुद ही यह साबित कर दिया है कि दिग्विजय सिंह की सोच कितनी ठीक थी। भाजपा और उनकी सरकार द्वारा अपने 10 साल के कार्यकाल में आम जनता से जो वायदे किए गए थे उन्हें कितना पूरा किया गया। बात महंगाई की या बेरोजगारी कम करने की हो या फिर किसानों की आर्थिक हालात बदलने की सरकार सभी मुद्दों पर नाकाम रही है। वही सरकार द्वारा अपने नीतिगत फैसलों से देश की अर्थव्यवस्था और सामाजिक व्यवस्था को बड़ा नुकसान पहुंचाया गया है। सरकार द्वारा लिया गया नोटबंदी का फैसला क्या देश से काला धन समाप्त करने के लिए लिया गया था? अब इस सवाल का जवाब सामने आ चुका है। काले धन को सफेद करने के लिए इस खेल से अर्थव्यवस्था को क्या नुकसान हुआ और लोगों को कितनी समस्याएं हुई यह सभी जानते हैं। सरकार द्वारा इलेक्टोरल बांड के जरिए कैसे धन बटोरने का काम किया गया इसका सच भी देश के सामने आ चुका है और देश के धनपतियों और उघोगपतियों को ऋण माफी से लेकर अन्य तमाम जरिए से कैसे देश की संपत्ति को लूटकर लाभ कमाया गया इसके लिए अब किसी भी प्रमाण की जरूरत नहीं रह गई है। पिछले 10 सालों में देश को जो सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है वह सत्ता के चीर हरण की संस्कृति से हुआ है। निर्वाचित राज्य सरकारों को गिराने और सत्ता हड़पने के खेल ने लोकतंत्र का जो तमाशा बनाया गया है तथा अब निर्विरोध सांसदों के चुनाव का जो रास्ता तलाशा है और उनके जरिए आम आदमी से उनके वोट के संवैधानिक अधिकार को छीनने की कोशिश की जा रही है वह अत्यंत चिंतनीय सवाल है। विपक्ष ने वर्तमान चुनाव में लोकतंत्र और संविधान बचाव के मुद्दों को लेकर जिस तरह सबसे अहम मुद्दा बना दिया है वह अब सत्ता धारी दल के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है मंदिर—मस्जिद, हिंदू—मुस्लिम और हिंदुस्तान—पाकिस्तान तथा आरक्षण जैसे मुद्दों को हवा देकर आसानी से चुनाव जीतने का सपना देखने वालों के लिए यह चुनाव पहले दौर के मतदान से ही लगातार कठिन होता जा रहा है। इस चुनाव का नतीजा क्या होगा 4 जून को तय हो जाएगा। लेकिन यह तय है कि नतीजा आर या पार ले जाने वाला ही होगा। या तो देश का लोकतंत्र और अधिक सशक्त व मजबूत बनकर उबरेगा या फिर देश के लोकतंत्र व संविधान का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।