कभी तीन तलाक तो कभी हिजाब, कभी सीएए तो कभी एनआरसी का विरोध। मुद्दा चाहिए बस उसके सही या गलत होने से कोई मतलब नहीं है। भाजपा को कैसे घेरना है कैसे यह सिद्ध करना है कि सरकार एक समुदाय विशेष को टारगेट कर रही है और शासन—प्रशासन द्वारा एक तरफा कार्रवाई की जा रही है कुछ राजनीतिक दल इस एजेंडे के जरिए अपनी सत्ता कायम करने की लड़ाई लड़ रहे हैं। ज्ञानवापी से लेकर नूपुर शर्मा के विवादित बयान तक विरोध का सिलसिला जारी है। जो अब पत्थरबाजी, हिंसा और आगजनी तक पहुंच चुका है। नूपुर शर्मा के विवादित बयान से पूर्व 3 जून को जुमे की नमाज के बाद जो हिंसा हुई उसके पीछे क्या कारण था? कब तक तो नूपुर शर्मा ने कोई ऐसा बयान नहीं दिया था लेकिन बीते जुमे के दिन देश के कई राज्यों में जिस तरह की हिंसा और पत्थरबाजी की घटनाएं हुई क्या वह नूपुर शर्मा के माफी मांगने के बाद भी जरूरी थी? जेएनयू में जो देश विरोधी नारे लगा रहे हैं और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे गूंज रहे हैं क्या वह राष्ट्रभक्ति का प्रतीक है? या जो सोशल मीडिया पर हिंदू देवी—देवताओं पर आपत्तिजनक पोस्ट डाल रहे हैं वह गैरकानूनी और गलत नहीं है? सच यह है कि देश में कुछ ऐसे असामाजिक तत्व सक्रिय हैं जो देश के सांप्रदायिक सद्भाव और भाईचारे को खत्म करा कर अराजकता फैलाना चाहते हैं। एक साथ पूरे देश में शहर—शहर हुई पत्थरबाजी और विरोध प्रदर्शनों से यह साफ हो गया है कि देश के कुछ नेता और तथाकथित संगठन विदेशी ताकतों के हाथों की कठपुतली बनकर देश और समाज के खिलाफ यह जंग लड़ रहे हैं। चार दिन पूर्व जुमे की नमाज के बाद देशभर में इन्हीं लोगों द्वारा अराजकता फैलाने की कोशिश की गई। जो अभी भी जारी है। खास बात यह है कि शासन—प्रशासन द्वारा धैर्य और संयम से काम लिया जा रहा है। जिसके कारण स्थिति अभी तक नियंत्रण में है। यह ठीक है कि लोकतंत्र में असहमति जताने या विरोध प्रदर्शन का हक सभी को है लेकिन हिंसा, आगजनी और पत्थरबाजी के लिए कोई स्थान नहीं है और न इसे विरोध प्रदर्शन का नाम दिया जा सकता है क्योंकि यह अराजकता है, देशद्रोह और समाज द्रोह है तथा गैर कानूनी है। जो लोग ऐसा कर रहे हैं उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा रही है। उपद्रव करने वाले, उपद्रव के लिए उकसाने वाले और उन्हें संरक्षण देने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। यह बात इन अराजक तत्वों को आज नहीं तो कल जरूर समझ में आएगी। अगर कोई यह सोचे बैठा है कि वह राष्ट्र और समाज से भी बड़ा है तो यह उसका मुगालता ही कहा जा सकता है। उपद्रव से और हिंसा से कोई मसला हल नहीं हो सकता है इसका सिर्फ एकमात्र जरिया संवाद हो सकता है। जिन मुद्दों पर असहमति है उन पर बैठकर बात करने से हल संभव है। अन्यथा ऐसे लोगों के खिलाफ कानून तो अपना काम करेगा ही।