लोकतंत्रा बनाम तानाशाही

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अगर कोई व्यक्ति या सरकार लोकतंत्रा में स्वयं को ही सर्वाेच्च मानने लगे तो उस देश में या तो लोकतंत्रा अपने पतन की ओर जा रहा होता है या पिफर उस देश की सत्ता का पतन तय हो जाता है। क्योंकि लोकतंत्रा और तानाशाही दोनों एक साथ नहीं चल सकते हैं। अभी बीते दिनों देश की सुप्रीम कोर्ट द्वारा मोदी सरकार द्वारा लाये गये इलेक्टोरल बांड के कानून को असंवैधनिक ठहरा कर तथा उसका हिसाब किताब सार्वजनिक करने का आदेश देकर सरकार को बड़ी मुश्किल में डाल दिया है। वही चंडीगढ़ के मेयर चुनाव की धंध्ली पर चुनाव परिणाम को बदलकर भाजपा की नीतियों को जिस तरह बेपर्दा करने का काम किया है उससे उसकी छवि को भारी आघात लगा है। इन पफैसलों के सदमे से वह उबर भी नहीं सकी थी कि एक चुनाव आयुक्त ने अपने पद से इस्तीपफा देकर केंद्रीय चुनाव आयोग में आयुक्तों की नियुक्तियों को भी पिफर सवालों के घेरे में लाकर ऽड़ा कर दिया गया जिसकी नियुक्तियां अपनी मनमर्जी के अनुकूल करने का रास्ता सरकार पहले ही आयुक्तों की उस समिति से मुख्य न्यायाध्ीश को बाहर कर बना चुकी है। इस लोकसभा चुनाव से पूर्व दो आयुक्तो की नियुक्ति आज आनन-पफानन में सरकार द्वारा इसलिए कर दी गई क्योंकि आज 15 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में एडीआर द्वारा दायर की गई जनहित याचिका पर सुनवाई की जानी थी। निश्चित तौर पर सरकार को यह लग रहा होगा कि सरकार को आयुक्तों की नियुक्तियों में मनमानी से रोका जा सकता है। यही कारण है कि उसने जो नियुक्तियां 15 मार्च को करनी थी उन्हें 14 मार्च को ही कर डाला और उसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भी भेज दिया गया। आयुक्तों की इस प्रक्रिया का हिस्सा रहे अध्ीर रंजन ;नेता विपक्षद्ध का आरोप है कि जब पफैसला बहुमत से ही होना था और सत्ता पक्ष के दो सदस्यों ने ऽुद ही दो नाम तय कर लिए तो उनकी सहमति या असहमति के मायने भी क्या है यह सत्ता की ऽुली मनमानी है या पिफर सुप्रीम कोर्ट और चीपफ जस्टिस चंद्रचूड़ को सत्ता की चुनौती है कि कर लो क्या करोगे? यह समय ही बतायेगा। ऐसा नहीं है कि सर्वाेच्च न्यायालय के पास ऐसे पफैसलों को पलटने या रोकने का अध्किार नहीं है भले ही संवैधनिक पदों पर नियुक्तियों को लेकर इससे पूर्व ऐसा न हुआ हो लेकिन हो सकता है। मगर सत्ता में बैठे लोगों का यह पफैसला देश के लोकतंत्रा और देश के करोड़ों मतदाताओं के वोट के अध्किार से जुड़ा हुआ है। तब क्या दिल्ली की सत्ता अब इस बात पर उतर आयी है कि उसे मतदाताओं की चिंता नहीं है। अगर सुप्रीम कोर्ट द्वारा सत्ता का पफैसला गलत ठहरा दिया गया तो क्या सरकार की बड़ी पफजीहत नहीं होगी?

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