लोकतंत्र बचाने की चुनौती

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क्या वाकई देश का लोकतंत्र इस आजादी के अमृत काल में किसी बड़े खतरे का सामना कर रहा है यह सवाल आज इसलिए सबसे अहम हो चला है क्योंकि इन दिनों अगर कोई सबसे ज्यादा चर्चाओं के केंद्र में है तो वह लोकतंत्र ही है। विपक्ष अगर लोकतंत्र के खतरे की बात करता है तो वह किसी की भी समझ में आ सकता है और यह माना जा सकता है कि विपक्ष का तो काम ही चिल्लाना है। लेकिन अब तो देश की सर्वाेच्च अदालत से लेकर सत्ता पक्ष तक सभी को लोकतंत्र पर आसन्न यह खतरा दिखाई देने लगा है और सभी चीख कर बता रहे हैं कि लोकतंत्र खतरे में है। सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले में अगर किसी कृत्य को लोकतंत्र की हत्या कहे तो फिर आप भला इसे अफवाह कैसे कह सकते हैं? चंडीगढ़ मेयर चुनाव में हुई धांधली को यही कहकर परिभाषित किया गया है कि यह लोकतंत्र की हत्या है। विपक्ष तो अनेक बार अनेको मामलों में ऐसा कहता आया है। बात चाहे महाराष्ट्र और कर्नाटक तथा मध्य प्रदेश में चुनी हुई सरकारों को सत्ता से बाहर धकेलने और सत्ता कब्जाने की हो या फिर संसद से 146 सांसदों को निष्कासित करने की। विपक्ष हर बार इन घटनाओं को लोकतंत्र को खतरे में ही बताता रहा है। अभी कुछ दिन पूर्व कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने यहां तक कह दिया था कि देश से लोकतंत्र खत्म होने वाला है। और हो सकता है कि 2024 के बाद कोई चुनाव हो ही नहीं। महाराष्ट्र की राजनीति में उठा पटक के समय राज्यपाल के फैसलों पर भी सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें गैर संवैधानिक करार दिया था। एक बड़ी साफ सी बात यह है कि जब राज्यों की निर्वाचित सरकारों का चीर हरण कर लिया गया और किसी भी निर्दाेष मीडिया कर्मी को सत्ता के खिलाफ लिखने या बोलने पर राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा बताकर जेल भेज दिया जाए तो फिर आप और हम किस लोकतंत्र की बात कर सकते हैं। और अब तो बिल्कुल भी नहीं कर सकते क्योंकि अब तो केंद्रीय सत्ता में बैठे लोग भी कह रहे हैं कि यह लोकतंत्र के लिए खतरा है। कल पड़ोसी राज्य हिमाचल में कांग्रेस की निर्वाचित सुख्खू सरकार अपने आप को सुरक्षित रखने में सफल हो गई और उसने विपक्ष के सरकार गिराने व अपनी सरकार बनाने के मंसूबों पर पानी फेर दिया। भाजपा के वह शीर्ष नेता जो चंडीगढ़ मेयर चुनाव में अलोकतांत्रिक तरीके से जीतकर जश्न मना रहे थे हिमाचल में सरकार के कायम रहने को लोकतंत्र के खिलाफ बताने लगे। हिमाचल में राज्यसभा चुनाव के दौरान जिन्होंने कांग्रेस के 6 विधायकों को अपनी पाले में खींचकर राज्यसभा चुनाव तो जीत लिया लेकिन सुख्खू सरकार का बजट प्रस्ताव गिराने में सफल नहीं हो सके। स्पीकर ने उनके 15 विधायकों को सत्र की कार्यवाही से निलंबित कर दिया और वह गैलरी में टहलते रह गए और सुख्खू बजट ही पारित नहीं करा ले गए बल्कि 9 मिनट में अन्य जरूरी विधेयक भी पारित करा ले गए। यह पहली मर्तबा है जब कांग्रेस ने भाजपा को उसी के दांव से मारा है। जहां तक बात लोकतंत्र की है भाजपा विपक्ष रहित सरकार की जो बात करती है वह लोकतंत्र नहीं हो सकता। रही लोकतंत्र की रक्षा की बात तो इतिहास गवाह है कि इसकी हिफाजत करना भी इस देश की जनता को बखूबी आता है और वह स्वयं कर लेगी।

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