बाबा तुलसीदास ने रामायण में लिखा है ट्टपर उपदेश कुशल बहुतेरे, यह कोई नई बात नहींं है कि संकट या मुश्किल के समय आपको उपदेश करने वालों की कोई कमी नहीं होती है। पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आने के बाद अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी विपक्ष को यह नसीहत दे रहे है कि विपक्ष को सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस बयान का मतलब साफ तौर पर यही है कि विपक्ष उनके फैसलों का उस तरह उग्र विरोध न करे जैसा की अब तक करता आया है। इसका एक अर्थ आप इस तरह भी निकाल सकते है कि प्रधानमंत्री विपक्ष से यह कहना चाहते है कि वह उनके फैसलों का विरोध न करे और वह जो कुछ भी कर रहे है उसे चुपचाप स्वीकार करते रहे। निश्चित तौर पर लोकतंत्र में किसी की मनमानी की कोई जगह नहीं होती है अगर प्रधानमंत्री विपक्ष का मनोबल तोड़कर या उसे कमजोर करके यह सोचते है कि वह सत्ता में है इसलिए उन्हे इसका अधिकार प्राप्त है तो यह उनकी गलत सोच ही कही जा सकती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का अपना ही अलग अंदाजे बयंा है यह बात बीते 10 सालों में सिर्फ विपक्ष ही नहीं जान सका है अपितु सारा देश जानता है। उनकी यह नसीहत जो अब तीन राज्यों के चुनाव में बड़ी जीत दर्ज करने के बाद दी जा रही है और इस नसीहत के साथ वह यह भी कह रहे है कि विपक्ष को इससे हताश होने की जरूरत नही है उन्हे और अधिक ज्यादा प्रयास करने चाहिए। लेकिन हताशा तो स्वाभाविक है। यह विपक्ष को मनोविज्ञानिक रूप से कमजोर बनाने की कोशिश ही है। वास्तव में उनका इस पूरे बयान के पीछे मकसद यही है कि देखो अब तुम कही भी नहीं हो सिर्फ हम ही हम है। इसलिए अब तुम सिर्फ खामोश रहो और हम जो कुछ करना चाहते है हमें करने दो। अकेले प्रधानमंत्री मोदी नहीं भाजपा के तमाम नेताओं में इन चुनावी नतीजों पर विपक्ष और खास तौर पर कांग्रेस को नसीहत देने की होड़ सी लगी हुई है। मध्य प्रदेश और राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ में मिली बड़ी जीत के बाद अब यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। इसमें कोई शक भी नहीं कि भाजपा ने राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस से सत्ता छीनकर और मध्य प्रदेश में सत्ता विरोधी रूझान को हराकर बड़ा काम कर दिया है। तथा विपक्ष को अपनी कमजोरियों पर आत्ममंथन पर विवश कर दिया है। कांग्रेस को खास कर इन चुनावी नतीजों पर गम्भीरता के साथ आत्ममंथन करना चाहिए। कांग्रेस के नेताओं द्वारा जिस तरह प्रधानमंत्री के खिलाफ वह असंसदीय और अशोभनीय भाषा का इस्तेमाल करते आये है वैसा कदाचित भी नहीं करना चाहिए। इससे मोदी की नहीं कांग्रेस की छवि ही खराब हो रही है जिसका उन्हे चुनाव में भारी नुकसान होता आया है। इसके अलावा कांग्रेस को अपनी सांगठनिक मजबूती पर चिंतन करने की जरूरत है। जो लगातार कमजोर होती जा रही है। कांग्रेस की जो वर्तमान स्थिति है उसमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूमिका कांग्रेस के अंर्तकलह की ही रही है। जिसके कारण कांग्रेस के तमाम बड़े और प्रभावशाली नेता कांग्रेस से पल्ला झाड़ते चले जा रही है। यह हालात किसी एक राज्य के नहीं है बल्कि पूरे देश के ही है। कांग्रेस के नेताओं के लिए कांग्रेस पार्टी से अधिक महत्वपूर्ण उनके निजी हित रहे है। कांग्रेस को आत्म मंथन करने की जरूरत है। रही बात मोदी की नसीहत की तो विपक्ष को सकारात्मक सोच के साथ और भी अधिक प्रभावशाली ढंग से एक मजबूत विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिए। क्योंकि यह चुनाव परिणाम ऐसे भी बुरे नहीं है कांग्रेस हर राज्य में एक मजबूत विपक्ष की भूमिका में है। लोकतंत्र की मजबूती और सुरक्षा की अहम जिम्मेदारी कांग्रेस के कंधो पर है जिसे उसे हर हाल में निभाना चाहिए।