कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बीते कल अपनी केंद्रीय चुनाव समिति की घोषणा कर दी गई है। यह खबर उत्तराखंड के लिए इसलिए विशेष खबर है क्योंकि इस 16 सदस्यीय चुनाव समिति में अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी ने सूबे के कांग्रेसी नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह को भी स्थान दिया गया है। यह खबर इसलिए और भी विशेष महत्व की हो जाती है क्योंकि बीते एक डेढ़ साल से प्रीतम सिंह के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने की खबरें सुर्खियों में रही हैं और प्रीतम सिंह को कई बार मीडिया को यह सफाई देनी पड़ी है कि उनके बारे में इस तरह की भ्रामक खबरें फैलाने का काम किया जा रहा है, वह जन्मजात कांग्रेसी हैं और कांग्रेसी ही रहेंगे। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने उन्हें जिस केंद्रीय चुनाव समिति का सदस्य बनाया है वह कितनी महत्वपूर्ण जिम्मेवारी है इस बात को इससे भी समझा जा सकता है कि इस समिति द्वारा ही विधानसभा और लोकसभा प्रत्याशियों के चयन पर अंतिम फैसला लेने का अधिकार होता है। बिना इस समिति की मंजूरी के किसी भी उम्मीदवार को टिकट नहीं मिल सकता है। इस विषय में जो सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस समिति में पार्टी के ईमानदार तथा निष्पक्ष और पार्टी हितों के लिए समर्पित नेताओं को ही स्थान दिया जाता है। भले ही प्रदेश के अन्य तमाम नेता प्रीतम सिंह के बारे में किसी भी तरह की अवधारणा रखते हो लेकिन पार्टी हाई कमान की नजरों में उनकी जो विश्वसनीयता और बेदाग छवि है उसका ही नतीजा और प्रमाण है कि उन्हें इस समिति में शामिल किया गया है। कांग्रेस जो लंबे समय से अंतर्कलह का शिकार है तथा प्रदेश कांग्रेस के अधिकांश नेता जिस तरह से एक दूसरे की छवि खराब करने और उन्हें राजनीतिक के हाशिए पर धकेलने का प्रयास करते रहे हैं वह किसी से भी छिपा नहीं है। प्रीतम सिंह भले ही इस कुर्ता घसीटन से दूर रहने के प्रयास करते रहे हो लेकिन कांग्रेस के नेताओं ने उनके साथ भी कोई कोर कसर उठाकर नहीं रखी गई है। उनसे प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी का छीना जाना और उन्हें नेता प्रतिपक्ष न बनने देने में ऐसे ही कांग्रेसी नेताओं ने अहम भूमिका निभाई है जो उनके पार्टी छोड़ने की खबरों को हवा देते रहे हैं। इन तमाम बातों से भले ही प्रीतम कितने भी आहत हुए हो लेकिन उन्होंने धैर्य और साहस के साथ ऐसे लोगों का न सिर्फ मुकाबला किया है बल्कि समय—समय पर उन्हें खूब खरी खोटी भी सुनाई है। पूर्व सीएम हरीश रावत और वर्तमान प्रदेश प्रभारी के साथ उनकी लंबे समय से अदावत चल रही है। सच यह है कि कांग्रेस के उन नेताओं जो उनकी हमेशा ही मुखाफलत करते रहे हैं को यह समझने की जरूरत है कि विश्वसनीयता न तो खरीदी जा सकती है न मुफ्त में मिलती है। पार्टी हाई कमान ने अगर उन्हें इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है तो यह उनकी विश्वसनीयता पर पक्की मोहर लगाने वाली ही है। और उनकी निष्ठा तथा पार्टी के प्रति समर्पण भाव के कारण ही यह संभव हो सका है। राजनीति के वर्तमान दौर में किसी भी नेता के लिए अपनी छवि को बेदाग बनाए रखना बहुत मुश्किल हो गया है। देश में 28 राज्य हैं और इस 16 सदस्यीय समिति में हर राज्य को प्रतिनिधित्व नहीं दिया जा सकता है उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य के एक नेता को अगर इस समिति में शामिल किया गया है तो यह उनकी कुछ खास विशेषताओं के कारण ही किया गया होगा। लेकिन प्रीतम सिंह के सामने भी कब अपनी कर्तव्य निष्ठा के साथ काम करने की बड़ी चुनौती होगी।