सरकार का युवाओं पर फोकस

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उत्तराखंड की धामी सरकार द्वारा इन दिनों युवाओं पर विशेष फोकस किया जा रहा है। सीएम मेधावी छात्र प्रोत्साहन छात्रवृत्ति योजना के बाद अब कल हुई कैबिनेट बैठक में देवभूमि उघमिता योजना और सीएम उच्च शिक्षा शोध प्रोत्साहन योजनाएं शुरू किए जाने के फैसले से युवाओं को कितना लाभ पहुंचा पाएंगे यह तो आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन सरकार ने अपने इन फैसलो के जरिए प्रदेश का ध्यान अपनी ओर खींचने और उन्हें यह संदेश देने का प्रयास जरूर किया है कि सरकार युवाओं के भविष्य को लेकर चिंतित है। दरअसल राज्य गठन के बाद अगर सूबे में किसी के साथ बड़ा धोखा या छल हुआ है तो वह युवाओं के साथ ही हुआ है जिन्हें नौकरी देने के नाम पर ठगा गया है। राज्य में हुई तमाम भर्तियों में जितने व्यापक स्तर पर धांधली हुई उसका भंडाफोड़ होने के बाद सूबे के युवाओं में जिस तरह का गुस्सा व नाराजगी देखी गई है उसे खत्म करने के लिए भर्तियोंं में धांधली करने वालों के खिलाफ की गई कार्यवाही के बाद भी युवा व छात्र अभी तक संतुष्ट नहीं है उनका मानना है कि अब सरकार चाहे जो भी करें उनका करियर तो खराब हो ही गया है। केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई कौशल विकास योजना का भी कोई खास लाभ सूबे के युवा बेरोजगारों को नहीं मिल सका है। इसके ऊपर से हर साल 2 करोड़ नौकरियां देने का वादा करने वाली सरकार में बैठे मंत्री और नेताओं द्वारा यह कहकर उनका उपवास किया जाना कि पकोड़ियां तलना भी रोजगार है, जले पर नमक छिड़कने जैसा ही है। अगर युवाओं को पकौड़ियां तलकर ही आजीविका चलानी है तो फिर पढ़ाई लिखाई में लाखों रुपए खर्च करने या अपने जीवन के बेस कीमती 10—15 साल का समय खराब करने की क्या जरूरत थी। खैर जो हुआ सो हुआ अब सरकार दावा कर रही है कि उसकी उघमिता योजना और शोध प्रोत्साहन योजनाएं युवा कल्याण में मील का पत्थर साबित होगी। कल कैबिनेट की बैठक में निर्णय लिया गया कि उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्रों को विभिन्न स्तरों पर प्रशिक्षण दिया जाएगा। तथा शोध को अंजाम तक पहुंचाने के लिए सरकार 18 लाख तक की आर्थिक मदद देगी। योजना के तहत हर साल तीन हजार युवाओं को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य रखा गया है। सरकार स्वरोजगार लिए 100 प्रोजेक्ट तैयार करेगी जो विभिन्न क्षेत्रों के होंगे जिससे युवा बेरोजगारों को रोजगार के बेहतर अवसर मिल सकेंगे। सवाल योजनाएं बनाने का नहीं है बड़ा सवाल है किसी भी योजना का धरातल पर पारदर्शिता और ईमानदारी से उतारे जाने का है। सरकार की सोच और नीतियां तो सही है लेकिन यह लाभार्थियों तक कैसे पहुंचती है? और उनका कितना फायदा होता है। कल हुई कैबिनेट की बैठक में युवाओं और बेरोजगार छात्रों के लिए प्रतियोगी परीक्षा देने के लिए आने—जाने के किराए में भी 50 फीसदी की छूट का निर्णय लिया गया है। यह छूट अगर 100 फीसदी होती तब इन युवाओं को इसका पूरा फायदा मिल सकता था। लेकिन कुछ न होने से बेहतर है कई बार इन बेरोजगार छात्रों के पास किराए के लिए भी पैसे नहीं होते हैं। इसके साथ ही युवाओं के कल्याण से जुड़े एक और मुद्दे पर सरकार ने फैसला लेते हुए खेलों में राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीतने वाले खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी देने का जो निर्णय लिया है वह स्वागत योग्य है। सभी अन्य राज्यों में इस तरह की व्यवस्था है जिसका दोहरा फायदा मिलता है एक तरफ खेलों को प्रोत्साहन मिलता है तो वहीं दूसरी ओर खेलो पर ध्यान देने वाले युवाओं के लिए रोजगार का रास्ता आसान हो जाता है। भले ही सरकार चुनावी रणनीति या फिर भर्ती घोटाले के दंश के कारण ऐसे फैसले ले रही हो लेकिन यह युवाओं के हित में जरूरी है।

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