महिलाओं के सम्मान और उनके सशक्तिकरण की बात करने वाले देश के उन नेताओं को इस बात पर गौर करने की जरूरत है कि जिन महिला पहलवानों ने अपनी प्रतिभा से देश का सम्मान बढ़ाया उन्हें बार—बार जंतर मंतर पर धरने पर बैठने और इंसाफ के लिए देश की सर्वाेच्च अदालत का दरवाजा खटखटाने की जरूरत क्यों पड़ रही है। यह कोई मामूली मुद्दा नहीं है जब आधा दर्जन से अधिक महिला पहलवानों द्वारा कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष और भाजपा के सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर अपने शारीरिक और मानसिक शोषण के आरोप लगाए जा रहे हैं। यौन उत्पीडन का आरोप लगाने वाली इन पहलवानों में नाबालिग भी शामिल है। खास बात यह है कि इस मामले की सुनवाई करने को लिए तैयार सुप्रीम कोर्ट ने भी यह माना है कि यह अत्यंत ही गंभीर मामला है उस मामले पर भी देश की सर्वाेच्च सत्ता पर आसीन नेताओं की चुप्पी और आरोपी का बचाव करने की कोशिशें और भी अधिक हैरान करने वाली हैं जिसके कारण गंभीर आरोपों के बावजूद भी आरोपी अभी तक अपनी कुर्सी पर जमा है और दिल्ली पुलिस ने 4 माह बाद भी इन महिला पहलवानों की रिपोर्ट तक दर्ज नहीं की है। सुप्रीम कोर्ट को दिल्ली पुलिस ने जो दलील दी है कि रिपोर्ट लिखने से पहले वह तथ्यों की जांच कर लेना चाहती है अत्यंत ही हास्यापद है। यह महिला पहलवान इससे पूर्व जनवरी में भी धरने पर बैठी थी। तब से लेकर अब तक इस मामले में दिल्ली पुलिस न जांच कर सकी न ही रिपोर्ट लिख सकी अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा जब पुलिस को 3 दिन का समय रिपोर्ट लिखने के लिए दिया गया और अदालत में अपना पक्ष रखने को कहा गया तब पुलिस की नींद टूटी है। अब सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की अगली सुनवाई 2 दिन बाद यानी 28 अप्रैल को होनी है। यह सभी जानते हैं कि पंजाब—हरियाणा और यूपी के ग्रामीण अंचलों से सबसे अधिक महिला पहलवान निकल कर आती हैं। हरियाणा की तमाम खाप पंचायतें अब इन महिला पहलवानों के समर्थन में आकर खड़ी हो गई है तो इसके राजनीतिक मायने भी समझे जा सकते हैं। भले ही इस मामले की जांच के लिए मुक्केबाज मैरीकॉम की अध्यक्षता में बनी जांच समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक न की गई हो लेकिन महिला पहलवानों द्वारा लगाए जाने वाले आरोप अत्यंत गंभीर तो है ही साथ ही उनके द्वारा दोबारा फिर इंसाफ की लड़ाई के लिए जंतर—मंतर तक आना और सर्वाेच्च न्यायालय तक जाना यह बताता है कि यह महिलाएं बेवजह अपनी फजीहत नहीं करा रही हैं उनके पास बृज भूषण के खिलाफ पुख्ता सबूत भी हैं। लेकिन इस पूरे प्रकरण में सत्ता पक्ष की संवेदनहीनता भी एक बड़ा सवाल है। अब जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है तो इसमें दूध का दूध और पानी का पानी होकर ही रहेगा। लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि जिस देश के खिलाड़ियों के पदक जीतने पर ही नहीं बल्कि पदक से चूकने पर भी प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उनका मनोबल बढ़ाते हुए उन्हें बधाई देते हैं उन्हें खेल संघों में व्याप्त गंदगी की सफाई की भी व्यवस्था करनी चाहिए जिससे देश विदेश में भारत की छवि धूमिल न हो।