आज जब भारत अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है और केंद्रीय सत्ता पर काबिज मोदी के नेतृत्व वाली सरकार सबका साथ सबका विकास, सबका विश्वास, का नारा लगाते हुए नहीं थक रही है, देश के आम और गरीब लोगों का आजादी के 75 सालों में कितना विकास हुआ है इस पर चिंतन मंथन करने का किसी के भी पास समय नहीं है। अभी कोरोना कॉल में इन गरीब लोगों को सरकार द्वारा जिंदा रहने के लिए मुफ्त राशन देने की व्यवस्था की गई थी। सवाल यह है कि 75 साल बाद भी देश की जनता को इतना संपन्न क्यों नहीं बनाया जा सका है कि वह अपने जीने के लिए जरूरी सामान को खुद जुटा सके। सत्ता में बैठे लोग कभी उन्हें मुफ्त का राशन देकर तो कभी मुफ्त गैस सिलेंडर बांटकर सिर्फ अपने वोटों का इंतजाम ही क्यों करते रहे हैं। हमारा संविधान भले ही सबको उन्नति के सामान अवसर देने वाला सही, लेकिन आज तक सबका सामान विकास हुआ क्यों नहीं? यह एक अति चिंतनीय विषय है। विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) की वार्षिक बैठक में अधिकार समूह ऑक्सफैम इंटरनेशनल द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक भारत की कुल संपत्ति के 40 फीसदी हिस्से पर सिर्फ एक फीसदी लोगों का अधिकार है। वही नीचे वाली 50 फीसदी आबादी के पास कुल संपत्ति का 3 फीसदी हिस्सा है। यानी अगर आबादी 140 करोड़ है तो 70 करोड़ लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का 3 प्रतिशत और 14 करोड़ के पास 40 फीसदी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत के 10 अमीरों पर अगर 5 फीसदी कर भी लगा दिया जाए तो बच्चों को स्कूल लाने के लिए पर्याप्त धन मिल सकता है। अरबपति गौतम अडानी को 2017 से 2021 के बीच मिले अवास्तविक लाभ पर एकमुश्त कर लगने से 1.79 लाख करोड़ मिल सकता है जो देश के 50 लाख प्राथमिक शिक्षकों के वेतन के लिए एक साल को काफी होगा। इस रिपोर्ट में अगर अरबपतियों पर एकमुश्त दो फीसदी कर लगा दिया जाए तो भारत को कुपोषण से निपटने के लिए 40,423 करोड़ हासिल कर सकता है जो 3 साल के लिए काफी होगा। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि केंद्र की मोदी सरकार पर विपक्ष द्वारा 3 उघोगपतियों के काम करने का आरोप लगाये जाते रहे है। देश की जिन समस्याओं का जिक्र आए दिन होता रहता है जिसमें महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार शामिल हैं उनका सबसे ज्यादा प्रभाव अगर किसी पर पड़ता है तो वह देश का वह निचला तबका ही है जिसे हम गरीबी की रेखा से नीचे मानते और गिनते हैं। सच यही है कि देश की 60 फीसदी आबादी की आर्थिक स्थिति आज भी ठीक नहीं है और इसी वर्ग का जीवन सबसे अधिक दुश्वारियां से भरा रहता है। जब देश आजाद हुआ था उस समय आर्थिक असमानता का स्तर इतना व्यापक और प्रभावी नहीं था लेकिन देश के राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था में आए बड़े बदलाव के कारण अब यह आर्थिक असमानता एक बड़ी समस्या और मुद्दा बन चुका है। व्यवस्थागत खामियों के कारण ही गरीब और अधिक गरीब होते जा रहे हैं तथा अमीर और अधिक अमीर। गरीबों के वोट बैंक पर राजनीति करने वालों को इस पर चिंतन मंथन करने की जरूरत है।