न्याय की बेहतर पहल

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भले ही हमारे नेताओं द्वारा भ्रष्टाचार मुक्त शासन—प्रशासन के लाख दावे किए जाते रहे हो और भ्रष्टाचार निवारण के लिए तमाम कायदे और कानून बनाए गए हो लेकिन आजादी के 75 साल बाद भी देश में भ्रष्टाचार सबसे बड़ी समस्या बना हुआ है। बीते कल देश की सर्वाेच्च अदालत द्वारा एक अपील पर सुनवाई के बाद जो फैसला सुनाया गया वह इस बात की उम्मीद बधंाता है कि इससे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ी जाने वाली जंग को बल मिलेगा। आमतौर पर यह देखा और सुना जाता रहा है कि साक्ष्यों के अभाव अथवा गवाहों के मुकर जाने या वादी द्वारा अपने आरोपों से पलट जाने पर दोषियों को निर्दाेष मानकर उन्हें बरी कर दिया जाता है। कानूनी भाषा में जिसे संदेह का लाभ देना कहा जाता है। अपराध हुआ लेकिन अपराधी को संदेह का लाभ देकर छोड़ दिया गया फिर इसके बाद यह पता लगाने की भी कोई जरूरत नहीं समझी जाती है कि अगर अपराध ए ने नहीं किया तो वह बी कौन है जिसने अपराध किया। अपराध अगर हुआ है तो किसी न किसी ने तो किया ही होगा। लेकिन किसी भी आरोपी के बरी होने के बाद उस अपराध की फाइल को बंद कर दिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा कल अपने फैसले में कहा गया है कि भ्रष्टाचार के किसी मामले में किसी लोक सेवक की दोष सिद्धि के प्रत्यक्ष साक्ष्य जरूरी नहीं है। परिस्थिति जन्य साक्ष्यों के आधार पर उसे दोषी ठहराया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि कोई लोकसेवक अगर आप से रिश्वत मांगता है तो उसका आप क्या साक्ष्य दे सकते हैं? आज के तकनीकी जमाने में भले ही उसकी कॉल रिकॉर्डिंग या वीडियो—ऑडियो संभव हो लेकिन इसे जुटाना कोई आसान नहीं है। आपका कोई काम किसी लोकसेवक द्वारा नहीं किया जा रहा है और आपको नजायज तरीके से परेशान किया जा रहा है या महीनों और सालों तक चक्कर कटवाए जा रहे हैं अथवा काम के एवज में सुविधा शुल्क वसूलने की कोशिश की जा रही है तो यह परिस्थिति जन्य साक्ष्य किसी लोक सेवक को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त साक्ष्य माने जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट की एस ए नजीर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ का यह फैसला एक नजीर बन सकता है। इस देश का हर आम आदमी भी इस बात को अच्छी तरह जानता है कि शासन—प्रशासन में बैठे लोग जिनकी जिम्मेवारी तो ईमानदारी से जनसेवा करने की है लेकिन उनके द्वारा ही आम आदमी का सबसे ज्यादा उत्पीड़न और शोषण किया जाता है। बिना सुविधा शुल्क वसूले कोई भी फाइल आगे नहीं बढ़ती है। अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जब दिल्ली में बड़ा आंदोलन किया तो भ्रष्टाचार की जड़ कहां? शासन में या प्रशासन में। इस पर भी लंबी बहस छिड़ी थी। लेकिन हुजूर इस बाजे का कोई एक सुर खराब नहीं है पूरा बाजा ही खराब है। सर्वत्र व्याप्त भ्रष्टाचार की इस बीमारी के लिए ऐसा कोई टीका नहीं बना है जो इसका समूल नाश कर सके हां इस फैसले को न्यायपालिका की बेहतर पहल जरूर मान सकते हैं

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