एक तरफ उत्तराखंड का शासन प्रशासन मसूरी की वादियों में बैठकर राज्य के भीतर विकास और राज्य को देश का सर्वश्रेष्ठ राज्य बनाने के लिए 3 दिन तक चिंतन—मंथन करते हैं। सूबे के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और मुख्य सचिव संधू द्वारा अधिकारियों को तमाम तरह की नसीहतें दी जाती हैं। उन्हें उनके अधिकारों और कर्तव्यों की याद दिलाई जाती है तथा चेतावनी दी जाती है कि अगर वह काम नहीं कर सकते तो स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर घर बैठे। लेकिन इसके बाद हुए विधानसभा सत्र में फिर इस मामले की गूंज सुनाई देती है कि राज्य के अधिकारी, विधायक और मंत्रियों तक के फोन नहीं उठाते है और न कॉल बैक करते हैं। कानून व्यवस्था को दुरुस्त रखने की जिम्मेदारी जिन अधिकारियों के कंधों पर है उनका इस तरह का रवैया है तो फिर आम आदमी की सुरक्षा और समस्याओं का समाधान तो बहुत दूर की बात है। विधायकों की इस शिकायत के बाद मुख्यमंत्री धामी ने सभी जिलों के अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि वह हर महीने जनप्रतिनिधियों के साथ समन्वय बैठक करें। लेकिन राज्य के अधिकारियों पर किसी भी बात का कोई असर होता नहीं दिख रहा है। बीते 2 दिन पूर्व प्रकाश में आए नैनीताल रामनगर के उस प्रकरण को देखिए जिसमें एक उपनिरीक्षक द्वारा अपनी एक शिकायत लेकर थाने पहुंचे व्यवसाई को न सिर्फ मारा पीटा गया बल्कि झूठे मुकदमे में जेल भेजने की धमकी दी गई। यह गौर करने की बात है कि अपने व्हाट्सएप पर मिली जानकारी के बाद पुलिस महानिदेशक द्वारा आरोपी उपनिरीक्षक को न सिर्फ निलंबित किया जाता है बल्कि एसएसपी नैनीताल को मामले की जांच कर रिपोर्ट देने के निर्देश दिए जाते हैं। पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार इस घटना पर न सिर्फ खेद जताते हैं अपितु पुलिसकर्मियों को साफ हिदायत देते हैं कि इस तरह की अनुशासनहीनता को कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि विभाग की छवि खराब करने वाले ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। दरअसल सूबे की मित्र पुलिस के इस तरह के कारनामों को लेकर आम आदमी से लेकर विधायक और मंत्री तक परेशान हैं विधानसभा सत्र के दौरान तिलकराज बेहड़ से लेकर आदेश चौहान तक कानून व्यवस्था से जुड़े इस मामले को जोर—शोर से उठाया गया था। अब सत्ता पक्ष के कई विधायक अधिकारियों के इस तरह के रवैए को लेकर नाराजगी जता रहे हैं। सवाल यह है कि चिंतन मंथन व अमृत निकालने की जो बात कही जा रही थी वह अमृत यही है। धामी सरकार के लिए सूबे की मनमौजी अफसरशाही पर नकेल कसना और उनसे काम लेना कोई आसान बात नहीं है। इन अधिकारियों के द्वारा 2025 में राज्य को देश का सर्वश्रेष्ठ राज्य बनाने में सहयोग की अपेक्षा सीएम और सरकार लगाए बैठी है वह उनका एक दिवास्वप्न भर है यह सिर्फ बातें हैं जिनका कोई नतीजा नहीं है।