इमामाें के लिए अलग निजाम पर सवाल

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समय के साथ समाज का मिजाज और निजाम भी बदलता है देश के संविधान में किए जाने वाले संशोधन बदलते वक्त की जरूरत रहे हैं। आजादी के बाद देश का शासन—प्रशासन बेहतर तरीके से संचालित किया जा सके इसके लिए संविधान तैयार किया गया। जिसकी संघीय व्यवस्था में एक मजबूत लोकतांत्रिक राष्ट्र की परिकल्पना निहित है जो सभी धर्मों, जातियों और संप्रदायों को समानता का अधिकार प्रदान करती है। लेकिन शासन—प्रशासन के स्तर पर कुछ लोगों, संगठनों और राजनीतिक दलों द्वारा अपने निजी स्वार्थों के लिए नियम कानूनों का गलत इस्तेमाल भी किया जाता है। ऐसे ही एक मामले को लेकर आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा केंद्रीय सूचना आयोग में जब चुनौती दी गई तो सूचना आयुक्त ने न सिर्फ इसे असंवैधानिक माना बल्कि केंद्रीय कानून मंत्री को संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक के सही अनुपालन का निर्देश दिया है। यह मामला 1993 में सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश से जुड़ा है जिसमें इमामो को 18 हजार रूपये महीने पारश्रमिक दिया जाता है। सूचना आयोग का साफ कहना है कि किसी धर्म को बढ़ावा देने के लिए करदाताओं के पैसों का उपयोग किया जाना असंवैधानिक व गैरकानूनी तो है ही साथ ही यह अन्य धर्मों के साथ पक्षपात भी है। सूचना आयुक्त के आदेश के बाद अब सभी राज्यों की सरकारों को सभी धर्मों के साथ सामान बर्ताव व व्यवहार करने को कहा गया है। देखना यह होगा कि अब राज्यों की सरकारों द्वारा क्या अन्य धर्मों के पुजारियों तथा पादरियों आदि को भी इमामो के सामान पारश्रमिक जाने की व्यवस्था की जाती है या फिर इमामो को दिए जाने वाले पारश्रमिक पर रोक लगाने का निर्णय लिया जाता है। आमतौर पर यह देखा गया है कि बीते कुछ सालों में खासकर मुस्लिम समुदाय से जुड़े किसी मुद्दे को लेकर विवाद जरूर खड़ा किया जाता रहा है तथा सरकार पर एक समुदाय विशेष को निशाना बनाने की बात कही जाती रही है। हमने तीन तलाक के मामले में भी यही देखा था तथा स्कूल कॉलेजों में हिजाब पहनकर आने के मामले में भी यही देखा था। वही अभी हाल ही में कराए गए मदरसों के सर्वे पर खींचतान जारी है और धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर को लेकर भारी विवाद रहा है। अगर आज देश और समाज में ऐसे हालात पैदा हुए हैं कि जनहित व राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को लेकर भी एक समुदाय विशेष के विरोध का सामना करना पड़ रहा है तो इसके पीछे वह राजनीतिक कारण निहित है जिसके तहत देश में जातिवाद की राजनीति होती रही है। यही नहीं आज देश के कई हिस्सों मेें देश विरोधी नारों की गूंज जो सुनाई दे रही है उसके पीछे भी वह घटिया राजनीतिक सोच ही है जो अलगाववाद को बढ़ावा दे रही है। यह बात अलग है कि राष्ट्रीय एकता और अखंडता की नींव को ऐसी अराजक ताकते कभी हिला नहीं सकेंगी लेकिन जब देश एक है और संविधान एक है तो सभी के अधिकारों में फर्क नहीं किया जाना चाहिए।

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