उत्तराखंड के नेता इन दिनों राज्य में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर अत्यंत ही चिंतित नजर आ रहे हैं। खास बात यह है कि यह चिंता सत्ताधारी दल भाजपा के उन नेताओं द्वारा जताई जा रही है जो खुद राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। सवाल यह है कि इस चिंता के मायने क्या है? और इस भ्रष्टाचार को रोकने के लिए उन्होंने क्या किया है? अभी 4 दिन पूर्व, पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने रामनगर में राज्य में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर कहा कि भ्रष्टाचार ने राज्य को खोखला कर दिया है। राज्य में भ्रष्टाचार दोनों हाथों से हो रहा है। त्रिवेंद्र सिंह रावत लगभग 4 साल तक सूबे के मुख्यमंत्री रहे भाजपा की जिस सरकार का वह नेतृत्व कर रहे थे वह बहुमत नहीं रिकॉर्ड बहुमत वाली सरकार थी। उन्होंने सीएम पद की शपथ लेने के बाद जो पहली बात कही थी वह भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस ही थी। सवाल यह है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत जो अपनी पहली कैबिनेट बैठक में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए लोकायुक्त का प्रस्ताव लेकर आए थे वह 4 साल सीएम की कुर्सी पर काबिज रहने के बाद भी लोकायुक्त का गठन क्यों नहीं कर पाए? विधानसभा में एनएच—74 भूमि घोटाले की सीबीआई जांच कराने की बात कहने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत सीबीआई की जांच क्यों नहीं करा पाए? उनकी ऐसी क्या मजबूरियां थी कि 4 साल बाद वह यह कहने पर विवश हो गए कि जब राज्य में भ्रष्टाचार ही नहीं है तो फिर लोकायुक्त की क्या जरूरत है? अगर 4 साल सीएम रहने के बाद उन्हें यह ज्ञान हो गया था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ न कोई डीएम कुछ कर सकता है और न कोई सीएम तब वह फिर आज जो भ्रष्टाचार का राग वह अलाप रहे हैं और भ्रष्टाचार द्वारा राज्य को खोखला करने की बात कह रहे हैं। इसका कुछ तो कारण होगा? वरना वह बेवजह क्यों अपने ही सीएम और अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा करते, उनकी मंशा कदाचित धामी को सीएम की कुर्सी से धकेल कर खुद इस कुर्सी पर आसीन होने की है तो यह उनका दिवास्वप्न ही हो सकता है जो कभी पूरा होने वाला नहीं है। ठीक वैसा ही भ्रष्टाचार पर पूर्व सीएम तीरथ रावत द्वारा बयान दिया गया है। उन्होंने तो सीना ठोक कर कहा है कि मैं भी सीएम रहा हूं लेकिन राज्य में बिना कमीशन खोरी के कोई काम नहीं होता है। वह तो यहां तक कहते हैं कि यूपी का हिस्सा रहने के समय जो 20 फीसदी कमीशन था हम भी राज्य के बनने के बाद वहीं से शुरु हो गए जबकि हमें शुन्य से शुरू होना चाहिए था। इन दोनों बड़े भाजपा नेताओं के बयानों पर विपक्ष कांग्रेस कैसे निशाना साध रही है यह तो अलग बात है लेकिन इन नेताओं के बयानों ने भाजपा व धामी सरकार की मुश्किलें जरूर बढ़ा दी है। लेकिन सच को स्वीकार करने और सच कहने की हिम्मत दिखाने के लिए तीरथ व त्रिवेंद्र बधाई के पात्र हैं। ढैंचा बीज घोटाले के आरोपों से घिरे त्रिवेंद्र सिंह और अपने कार्यकाल में हुए महाकुंभ के दौरान कोरोना जांच घोटाले को रोकने में नाकाम रहने वाले तीरथ सिंह रावत को राज्य का भ्रष्टाचार कैसे रोका जाए इसके उपायों पर भी शासन—प्रशासन का मार्ग दर्शन करने की जरूरत है। भ्रष्टाचार पर कोरी चिंता जताने का वरना कोई औचित्य नहीं है ऐसे में लोग उनकी चिंता का कुछ तो मतलब निकालेंगे ही।