नशे में तबाह होते आज के युवा

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आज के युवा नशे की लत में फंसकर अपनी जिंदगी तबाह कर रहे है, जिन युवाओं के हाथों में किताबे होनी चाहिए थी उनके हाथों में नशीली सामग्री, सिगरेट, शराब व तंबाकू के पैकेट होते है। न जाने कितने युवाओं को नशे की लत के चलते अपनी जान गंवानी पड़ी है और न जाने कितने परिवार इससे तबाह हो चुके हैं। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने नशे के खिलाफ कड़ा फैसला लेते हुए पुलिस व अन्य विभागों को 2025 तक उत्तराखंड को नशा मुक्त बनाने के निर्देश दिए हैं। हालांकि पूरे राज्य में नशा कारोबारियों का जाल इस प्रकार फैला है कि उसे तोड़ने में पुलिस को भी नाको चने चबाने पड़ रहे हैं। राज्य के नशा मुक्ति केंद्रों में लगातार बढ़ती युवाओं की संख्या इस बात का प्रमाण है कि नशे के सौदागरों ने कई युवाओं की जिन्दगी शुरू होने से पहले ही खत्म कर दी है। राज्य गठन के बाद जिस प्रकार से उत्तराखंड में नशे के कारोबार ने अपने पांव पसारे हैं उससे यह बात साफ हो गई है कि पुलिस व अन्य संबंधित विभागों के अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत से यह कारोबार फैला है। इसका प्रमाण यह है कि आज शिक्षण संस्थाओं में पढ़ने वाले युवा नशे की जकड़ में तेजी से आ रहे हैं। मासूम बच्चों के जीवन से खिलवाड़ करने वाले नशे की यह कारोबारी आज लखपति करोड़पति बन चुके हैं। चिंता की बात यह है कि अब तक पुलिस नशा सिंडिकेट को तोड़ने में नाकाम रही है जबकि नशा कारोबारी नशा करने वाले युवाओं तक नशा बेखौफ पहुंचा रहे है। नशे के कारोबार को खत्म करने के लिए पहले भी पुलिस अभियान चलते रहे हैं लेकिन इनका कोई खास असर नशा माफियाओं पर नहीं देखा गया है दरअसल यूपी तथा अन्य राज्यों के रहने वाले कई नशे के सौदागर राज्य गठन के साथ ही यहां काम के बहाने आए और उन्होंने पुलिस व अन्य विभागों के कुछ कर्मचारियों की मिलीभगत से अपने धंधे को बढ़ाना शुरू करा। न तो पुलिस ने ऐसे लोगों का सत्यापन किया और न ही उनके कारोबार के बारे में उनकी कुंडली खंगाली। यदि पुलिस चाहती तो इस धधेें में लिप्त लोगों की पहचान करने के बाद उन्हें जेल की सलाखों के पीछे भेज सकती थी और उन पर गैंगस्टर जैसी अन्य गंभीर धाराएं लगाकर दूसरों को सबक देने के प्रयास भी करती लेकिन पुलिस व इनसे संबंधित अन्य विभागों के कुछ कर्मचारी रातों—रात दूसरों की तरह लखपति बनना चाहते थे फिर उनसे ईमानदारी की उम्मीद कैसे की जा सकती थी। राजधानी में खुले शिक्षण संस्थान भी इस नशाखोरी के लिए उतना ही दोषी हैं जितने नशे के सौदागर, इन शिक्षण संस्थानों के कुछ कर्मचारी भी युवाओं तक नशे की सामग्री पहुंचाने का काम कर रहे हैं सवाल यह है कि क्या इन मासूमों की जिंदगी को बचाने के लिए अब सरकार वाकई गंभीर है?

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