पिछले दो लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद बदहाली और हताशा में डूबी कांग्रेस को बड़े परिवर्तन की जरूरत है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए हुए इस चुनाव को इस परिवर्तन की एक नई शुरुआत के तौर पर माना जा सकता है जिसमें अब कांग्रेस की कमान एक अति अनुभवी और सुलझे हुए नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के हाथ में है। राहुल गांधी को अब तक विपक्षी नेता जिस तरह से हल्के में लेते रहे हैं और उन्हें बबलू तथा पप्पू कहकर उनका मखौल उड़ाते देखे जाते रहे हैं अब वह ऐसा कदाचित भी नहीं कर सकेंगे क्योंकि खड़गे सिर्फ कांग्रेस के ही कद्दावर नेता नहीं है बल्कि देश के उन भारी—भरकम नेताओं में शामिल है जिनका सभी सम्मान करते हैं। यही नहीं कांग्रेस जैसी देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी ने पार्टी के आंतरिक संगठन के सर्वाेच्च पद के लिए चुनाव कराकर जो एक मिसाल पेश की है वह देश के मजबूत लोकतंत्र को तो रेखांकित करती ही है, साथ ही अन्य राजनीतिक दलों के लिए भी एक मिसाल है। किसी भी राजनीतिक दल पर किसी एक व्यक्ति या परिवार विशेष का एकाधिकार स्वस्थ लोकतंत्र में स्वीकार्य नहीं किया जा सकता है। भले ही राहुल गांधी ने दो बार की लगातार हार के बाद इस पद पर बने रहने को अस्वीकार किया जाना किसी भी दृष्टिकोण से देखा जा रहा हो लेकिन राहुल गांधी और उनके परिवार ने इस चुनाव से दूरी बनाकर एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया है कि उनके लिए देश और पार्टी ही थी सबसे ऊपर है। भले ही इस चुनाव को लेकर सत्ता की चाटुकारिता में जुटे रहने वाले कुछ नेता, राजनीतिक विश्लेषण और मीडिया कर्मी इसे इलेक्शन नहीं सलेक्शन का प्रचार कर रहे हो लेकिन दो प्रत्याशियों के बीच हुए इस मुकाबले में सभी संवैधानिक नियमावली का पालन किया गया है। शशि थरूर द्वारा चुनाव के बाद अपनी आपत्ति दर्ज कराने से लेकर खुले मन से अपनी हार को स्वीकार करने और नवनिर्वाचित अध्यक्ष खड़गे को बधाई देने तक सब कुछ लोकतांत्रिक मर्यादाओं और परंपरा के अनुरूप ही हुआ है। शशि थरूर को इस चुनाव में मिले 1000 से अधिक मत इस चुनाव की संवैधानिक वैधता पर मोहर लगाते हैं और यह कांग्रेस में उनकी बेहतरीन छवि दर्शाने के लिए काफी है। कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए पिछली बार हुए चुनाव में जब सोनिया गांधी के खिलाफ जितेंद्र प्रसाद मैदान में थे तो 7542 में से सिर्फ 94 वोट ही मिल सके थे और वह सौ का आंकड़ा भी पार नहीं कर सके थे। नवनियुक्त कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने अब न सिर्फ मृतप्राय हो चली कांग्रेस में नव चेतना का संचार करने की गंभीर चुनौती है बल्कि कांग्रेस के कुनबे को एकजुट रखने की भी चुनौती है। उन्हें न सिर्फ कांग्रेस के उन जी—23 नेताओं के साथ समन्वय की जरूरत होगी जिन्हें गांधी परिवार का शुभचिंतक माना जाता है बल्कि शशि थरूर के समर्थक सभी नेताओं को साथ लेकर चलना होगा। ऐसे संक्रमण काल में जब कांग्रेस के युवा और पुराने नेता पार्टी का साथ छोड़कर भाग रहे हैं पार्टी को हर स्तर पर मजबूती देना और कार्यकर्ताओं में जोश भरना आसान काम नहीं होगा। इस चुनौती पर खड़गे कितना खरा उतर पाते हैं आगे आने वाला समय ही बताएगा।