बीते कल केदारघाटी में हुई हेली दुर्घटना में पायलट सहित सात लोगों की मौत हो गई। इस दुर्घटना का कारण भले ही घाटी का खराब मौसम बताया जा रहा हो, लेकिन इसका कारण सिर्फ खराब मौसम नहीं है खराब व्यवस्थाएं भी इस दुर्घटना का एक अहम कारण है। केदारनाथ की जो हेली संचालन की व्यवस्था है उसमें अगर खामियां नहीं रही होती तो इतने खराब मौसम में हेली उड़ान की इजाजत नहीं दी गई होती। उड़ान भरनी है या नहीं इसे देखने वाला कोई नहीं है। यहंा सब कुछ जो भी होता है वह हेली कंपनियां ही करती है। केदारनाथ में वर्तमान में 9 हेली कंपनियों द्वारा सेवाएं दी जा रही है। जिनके बीच अधिक से अधिक कमाई करने के लिए आपाधापी मची रहती है। जहां तक खराब मौसम की बात है तो वह यहां हमेशा ही का बना रहता है और 10—15 की उड़ान के दौरान कई बार मौसम को बदलते हुए भी देखा जाता है। अक्सर मौसम खराब होने की बात को इसलिए भी नजरअंदाज कर दिया जाता है कि यहां न तो यह निर्धारित होता है कि जिस लाट व टाइम का टिकट उन्हे दिया गया है उसी में उन्हें जगह मिलेगी और न यह तय होता है कि उनकी यात्रा का तय समय क्या होगा? कई बार समय के बदलाव के कारण उन यात्रियों को भी अपनी यात्रा कार्यक्रम में बदलाव करना पड़ता है जो दिन के दिन दर्शन कर वापस लौटना चाहते हैं। अनचाहे ही सही उन्हें धाम में रात बितानी पड़ती है। वही धाम में वीआईपी दर्शन के जरिए यात्री समय से पहले दर्शन कर जल्द वापसी के प्रयास करते हैं और अधिक किराया देकर सारे सिस्टम को बिगाड़ देते हैं। यहां सभी को अधिक से अधिक कमाई करने की चिंता तो होती है लेकिन यात्रियों की जान की परवाह किसी को भी नहीं होती है। हर उड़ान का समय और फेरे निर्धारित है इसलिए भी खराब मौसम में भी उड़ान का दबाव दूसरी कंपनियों द्वारा डाला जाता है। यह उड़ान व्यवस्था नहीं इसे डग्गामारी ही कहा जा सकता है। कल जिस हेलीकॉप्टर की दुर्घटना हुई उसके पायलट ने भी खराब मौसम के कारण उड़ान भरने से मना किया था जिस पर उड़ान भरने का दबाव डाले जाने की बात भी सामने आई है। खैर दुर्घटना क्यों हुई इसका पता तो जांच के बाद ही चल सकेगा लेकिन इन हेली कंपनियों द्वारा खटारा हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल किया जाना और नियम संयत हेली सेवा न होने के सच को नकारा नहीं जा सकता है। यह बात कितनी अजीब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर तमाम वीवीआइपी केदारनाथ आते जाते रहते हैं लेकिन केदार घाटी में कोई एयर ट्रेफिक कंट्रोल टावर तक नहीं है। जब भी कोई बड़ा हादसा हो जाता है तो व्यवस्थाओं को लेकर तो एक दो दिन चर्चाएं होती है फिर सब कुछ वैसा ही चलता रहता है जैसे चल रहा है।