बेखौफ बदमाश, खौफ में जनता

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राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर मुख्यमंत्री धामी और भाजपा के नेता भले ही कुछ भी कहे लेकिन अगर बीते एक डेढ़ माह की घटनाओं पर नजर डाली जाए तो कुमाऊं से लेकर गढ़वाल तक जिस तरह आपराधिक वारदातों की झड़ी लगी हुई है वह इस बात का सबूत है कि अपराधियों में पुलिस का कोई खौफ नहीं है। वह आम आदमी के लिए तो भय का कारण बन ही चुके है बल्कि पुलिस को भी खुली चुनौती दे रहे हैं। दो दिन पूर्व रुड़की के लक्सर में जिस तरह बदमाशों द्वारा गस्ती पुलिसकर्मियों पर फायरिंग कर उन्हें मारने की कोशिश की गई यह कोई कम गंभीर मसला नहीं है। सवाल यह है कि जो पुलिस बदमाशों से अपनी रक्षा नहीं कर सकती वह आम आदमी की क्या हिफाजत करेगी? वहीं जब बदमाश पुलिस पर हमला कर सकते हैं तो उनके लिए आम आदमी क्या चीज है? बीते 15 अक्टूबर को डोईवाला में काबीना मंत्री प्रेमचंद्र अग्रवाल के भाई के घर हुई दिनदहाड़े डकैती की घटना यह बताने के लिए काफी है कि बदमाशों को किसी का भी खौफ नहीं है। इन बदमाशों को यह पता था कि यह घर जहां वह डकैती डाल रहे हैं सरकार में मजबूत व नजदीकी रखने वाला परिवार है। लेकिन इसकी कोई परवाह न करते हुए बदमाश दोपहर में करोड़ों की डकैती डालकर आसानी से फरार हो गए। इन दोनों घटनाओं के अलावा अभी बीते 10 अक्टूबर को काबीना मंत्री सौरभ बहुगुणा की हत्या की साजिश के जिस षड्यंत्र का खुलासा हुआ है वह भी कम चौंकाने वाला नहीं है। काबीना मंत्री के पिता और पूर्व सीएम विजय बहुगुणा द्वारा इस षड्यंत्र के पीछे सिंडिकेट का हाथ होने की आशंका जताई गई है। यह घटना इस बात का संदेह जताती है कि देवभूमि भी अब राजनीतिक अपराध की जद में आती जा रही है। खराब कानून व्यवस्था पर गंगा भोगपुर के रिजार्ट की वह घटना भी एक बड़ा उदाहरण है जिसमें वनंतरा रिजार्ट में काम करने वाली अंकिता की हत्या का मामला सामने आया है। इस जघन्य अपराध की विरोध में उत्तराखंड अभी तक सुलग रहा है। अभी काशीपुर में गोली लगने से हुई एक महिला की मौत और क्रेशर कारोबारी की घर में घुसकर की गई हत्या जैसी घटनाएं न सिर्फ चिंताजनक है बल्कि शासन—प्रशासन पर एक बड़ा सवाल खड़ा करने वाली हैं। जिन्हें लेकर अभी मुख्यमंत्री ने राज्य के पुलिस अधिकारियों को कड़े दिशा निर्देश दिए गए हैं। आमतौर पर बढ़ते अपराधों का कारण बढ़ती आबादी को बताकर पल्ला झाड़ लिया जाता है लेकिन आम आदमी में इन बढ़ते अपराधों के कारण भय का माहौल बना हुआ है शासन—प्रशासन द्वारा इसे गंभीरता से लेने की जरूरत है।

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