शराब कांडः सिस्टम पर सवाल

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हरिद्वार का जहरीली शराब कांड हमारे समाज, शासन—प्रशासन और समूचे सिस्टम की उस तस्वीर को दिखाता है जो आज के वर्तमान का सच है। देश में जिस पंचायती राज का ढोल पीटा जाता है उस पंचायती राज और उसके लिए होने वाले चुनाव को जीतने के लिए क्या—क्या हथकंडे इस्तेमाल किए जाते हैं और वह कितने खतरनाक होते हैं 10 लोगों की मौत इसका एक उदाहरण है। प्रधान पद की महिला उम्मीदवार के पति को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है जिसने लोगों को यह जहरीली शराब बांटी थी। प्रधान पद की उम्मीदवार महिला और उसका देवर फरार है। बताया जा रहा है कि उसने 15 से 20 लोगों को यह शराब बांटी थी 10 की मौत हो चुकी है तथा कुछ अभी जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहे हैं। बीते 3 दिनों से मौतों का सिलसिला जारी है जो कहां जाकर थमेगा अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। प्रशासन इस मामले में चार पुलिसकर्मियों और कुछ आबकारी विभाग के लोगों को सस्पेंड कर चुका है। हास्यापद बात यह है कि हरिद्वार के जिला अधिकारी प्रारंभिक दौर में इन मौतों को अन्य कारणों से हुई मौत ही बता कर उन पर पर्दा डालने की कोशिश करते दिखे। उनका कहना था कि यह मौतें जहरीली शराब से नहीं हुई है लेकिन उनके इस झूठ से अब पर्दा उठ चुका है। सवाल यह है कि जब इतने बड़े पद पर बैठे अधिकारी ही सच को झूठ और झूठ को सच बनाते रहेंगे तो ऐसे अधिकारियों से आम आदमी क्या उम्मीद कर सकता है। बात सिर्फ यह नहीं है कि चुनावी व्यवस्था में क्या कुछ गलत है सवाल यह है कि प्रशासन द्वारा इस गलत को रोकने के लिए क्या कुछ किया जा रहा है। चुनाव आचार संहिता के अनुपालन की जिम्मेदारी पुलिस प्रशासन की है। फिर वह चुनाव में बांटे जाने वाली इस अवैध शराब को क्यों नहीं रोक पाती है। मतदाताओं को रिझाने के लिए बांटी गई इस शराब को अगर पुलिस ने रोका होता तो 10 लोगों को अपनी जान से हाथ न धोना पड़ता और न 10 परिवार बर्बाद होते जिनके परिजन चले गए। पंचायत चुनावों में महिलाओं को भागीदारी मिली है उसका महिलाओं के सशक्तिकरण में कितना लाभ हो रहा है यह भी सब लोग जानते हैं। अधिकांश महिला प्रधान सिर्फ नाम की प्रधान होती हैं सारे फैसले और उनका सारा काम उनके पति ही करते हैं वह तो सिर्फ कागजों पर दस्तक भर करने के लिए होती हैं। जहां तक चुनाव प्रक्रिया की बात है तो उसमें इतने सारे छेद हैं कि अच्छे लोग चुनाव लड़ना तो क्या चुनाव में उनकी कोई दिलचस्पी तक नहीं होती है। उल्टे सीधे हथकंडे अपना कर चुनाव जीतने वाले प्रतिनिधियों से भी जनता अपने कल्याण की क्या उम्मीद कर सकती है। अब सरकार इसकी जांच के आदेश दे चुकी है जांच होती रहेगी और हम फिर किसी हरिद्वार कांड की प्रतीक्षा करते रहेंगे, सिस्टम का सच यही है।

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