मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा आगामी तीन वर्षो के भीतर उत्तराखण्ड को ड्रग्स मुक्त करने की मुहिम छेड़ दी गयी है। हालांकि पुलिस महकमा इस मुहिम की सफलता में कितना कारगर रहता है यह तो समय ही बता सकेगा। लेकिन इसे प्रदेश का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि उत्तराखण्ड में ड्रग्स का कारोबार बड़े पैमाने पर अपने पांव पसार चुका है, राज्य गठन के साथ ही अन्य कारोबारों की तरह उत्तराखण्ड में नशे का कारोबार भी बड़े पैमाने पर पनपा। हालांकि पुलिस प्रशासन द्वारा शुरू में इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। जिसका फायदा नशा कारोबारियों ने उठाया और उन्हे स्कूल, कालेज सहित अन्य शिक्षण संस्थानों में इस कारोबार को फैलाने में सफलता मिली। बीते समय में ज्यादातर अपराध इस नशे के कारण ही हुए है, ऐसा पुलिस का मानना है। खास बात यह है कि पिछले कुछ वर्षो में युवाओं और बच्चों में नशे की लत इस कदर बढ़ चुकी है कि 80 फीसदी युवा व बच्चे इसकी चपेट में आ चुके है। जबकि सालों से शासन—प्रशासन में बैठे लोग इस सच को जानते है लेकिन वह फिर भी आंखे मूंदे बैठे है। होटल, बार, स्कूलों व कालेजों तथा होस्टलों तक नशे का यह कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। जो भी युवा एक बार इसके दायरे में आ गया उसका इससे निकल पाना संभव नहीं है। बताया जाता है कि अकेले राजधानी देहरादून में ड्रग्स का करोड़ो का कारोबार है। जितना कारोबार शराब से होता है उसके अधिक ड्रग्स से होता है और इसकी चपेट में आकर कई परिवार तबाह होते है। ऐसे में अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा उत्तराखण्ड को 2025 तक ड्रग्स मुक्त करने की मुहिम छेड़ देना वाकई बड़ी बात है। लेकिन राज्य को ड्रग्स मुक्त करने के लिए पुलिस प्रशासन को भी अब सचेत होना पड़ेगा, तब कहीं जाकर राज्य 2025 तक ड्रग्स मुक्त हो सकेगा।