कहा जाता है कि जब वक्त बुरा होता है तो अपने भी साथ छोड़ जाते हैं। देश की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी भी आजकल अपने जीवन काल के सबसे संकटपूर्ण समय से गुजर रही है। युवा नेताओं को इस अवनति काल में कांग्रेस में बने रहने पर अपना कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा है वहीं पुराने नेताओं को कहीं और ठिकाना नहीं दिख रहा है इसलिए वह बड़े—बड़े पदों पर चिपके रहने और अपने वजूद को बनाए रखने पर मजबूर हैं। भले ही उनकी स्थिति अब कुछ कर दिखाने के मामले में एक छूटे हुए कारतूस जैसी है जो किसी काम का नहीं रहता है। उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस में इन दिनों जो कुछ दिख रहा है या हो रहा है उस सबका लब्बोलवाब भी यही है। दो विधानसभा चुनावों में मिली बड़ी हार के बाद अब वह विधायक भी जो चुनाव जीत कर आए हैं पार्टी के खिलाफ बागी तेवर दिखा रहे हैं। तमाम अन्य राज्यों की तरह अब यहां भी कांग्रेसी नेता खुद ही पार्टी की कब्र खोदने में लगे हुए हैं। यह अलग बात है कि पार्टी की कब्र खोदकर वह खुद अपनी भी कब्र खोद रहे हैं क्योंकि जिस महत्वाकांशा के कारण वह ऐसा कर रहे हैं उनकी वह इच्छा कहीं भी और कभी भी पूरी नहीं हो सकती है। पूर्व सीएम विजय बहुगुणा और डॉ हरक सिंह इसके उदाहरण हैं। 2016 में जो नेता कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए थे या अब 2022 में जो पार्टी के खिलाफ बगावत का झंडा लेकर फिर रहे हैं उनमें से कोई एक भी उत्तराखंड राज्य का कभी मुख्यमंत्री नहीं बन सकता है। हरीश धामी सहित जिन आठ—दस विधायकों द्वारा कांग्रेस में सम्मान न मिलने की बात कर भाजपा के लिए सीट छोड़ने या भाजपा में जाने की धमकियां दी जा रही है ऐसे नेताओं को कांग्रेस को खुद ही धक्का दे देना चाहिए क्योंकि इन्हें मनाने के प्रयासों से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। कांग्रेस हाईकमान को इस बुरे वक्त में कड़े फैसले लेने की जरूरत है जो पार्टी के अनुशासन का पालन न करें उन्हें पार्टी से सिर्फ निकाला ही नहीं जाना जरूरी है बल्कि उनकी वापसी पर भी आजीवन बैन लगाना भी जरूरी है। हो सकता है कि इस कठोर फैसले के तत्कालिक परिणाम कांग्रेस को थोड़े से अप्रिय प्रतीत हों लेकिन दूरगामी परिणाम जरूर अच्छे होंगे। जो बड़े बुजुर्ग नेता पार्टी में नई पौध तैयार नहीं होने देना चाहते उन्होंने जीवन भर राजनीतिक सुख भोगा है। अब उनकी सेवा निवृत्ति जरूरी है क्योंकि वह पार्टी की प्रगति में खुद एक बाधा है। उनकी चाटुकारिता से शीर्ष नेतृत्व को मुक्त हुए बिना कांग्रेस का उत्थान संभव नहीं है। दो दशक में कांग्रेस ने जो खोया है उसे अब वह दो सालों में अर्जित नहीं कर सकती है। लेकिन संगठनात्मक स्तर पर लिए गए कठोर और सही फैसले एक दशक में कांग्रेस की गाड़ी को पटरी पर जरूर ला सकती है। लेकिन इसके लिए दृढ़ संकल्प और इच्छाशक्ति के साथ कठोर परिश्रम की जरूरत है। अन्यथा कांग्रेस नेता जिसे एक पार्टी नहीं विचार बताते हैं उस विचार का महत्वहीन हो जाना तय हैं।