हरीश रावत के भाजपा में जाने की चर्चा, कितना सच?

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  • भाजपा की तारीफ करना क्या गुनाह है
  • सच के आईने से घबराते कांग्रेसी नेता

देहरादून। उत्तराखंड कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत क्या भाजपा में जाने वाले हैं? सूबे की राजनीति के गलियारों में यह सवाल चर्चाओं के केंद्र में है। पूर्व सीएम रावत के बारे में चल रही इस चर्चा पर जब कांग्रेस के कद्दावर नेता प्रीतम सिंह से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उनके बारे में मैं कुछ कहूं यह मुनासिब नहीं है।
यह सच है कि हरीश रावत क्या कहते हैं और उनके द्वारा कही गई किसी भी बात के मायने क्या है इसे समझना मुश्किल ही नहीं वास्तव में नामुमकिन है, यह बात प्रीतम सिंह ने भी कही है। असल में हरीश रावत के भाजपा में जाने की चर्चा को भाजपा खेमें ने ही हवा दी है और इसका आधार बनाया है सोशल मीडिया पर हरीश रावत के वह दो पोस्ट जो दिल्ली चुनाव के नतीजों के बाद लिखी गई है। पहली पोस्ट में उन्होंने एक सवाल उठाया है कि क्रिकेटर रोहित शर्मा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों में बड़ा हिटर कौन? वहीं दूसरी पोस्ट में उन्होंने पीएम मोदी और अमित शाह को विपक्ष को रौंदने वाला प्रचारक बताते हुए कहा गया है कि दिल्ली जीते नहीं उससे पहले अब बिहार की तैयारी, यही है आज की भाजपा।
हरीश रावत द्वारा भाजपा की रणनीति तथा पीएम मोदी तथा अमित शाह की की गई इस तारीफ के मायने तमाम नेता अपनी—अपनी राजनीतिक समझ के अनुसार निकाल रहे हैं जहां भाजपा खेमे ने यह शगुफा छोड़कर कि 2027 के चुनाव से पहले हरीश रावत भाजपा में जाने वाले हैं ऐसी हवा दे दी है कि अब राजनीतिक गलियारों में बस इसी मुद्दे पर चर्चा हो रही है। कुछ कांग्रेसी नेता हरीश के बयानों की लानत मलानत कर रहे हैं। कुछ इन्हें कतई तवज्जो नहीं दे रहे हैं।
कोई कुछ भी कहे या चर्चा कुछ भी हो रही हो हरीश रावत को अगर कांग्रेस छोड़ने ही होती तो वह उस समय कांग्रेस छोड़ देते जब उन्हें पीछे धकेल कर विजय बहुगुणा को सीएम की कुर्सी पर बैठाने का फैसला हाई कमान ने लिया था। हरीश रावत अब वैसे भी इतने उम्र दराज हो चुके हैं कि इस उम्र के नेताओं के लिए भाजपा में सिर्फ मार्गदर्शक मंडल में ही जगह मिल सकती है इसलिए यह चर्चा में कोई दम दिखाई नहीं देता है दरअसल हरीश रावत द्वारा इन पोस्ट में की गई टिप्पणियों से कांग्रेस के नेताओं को आइना दिखाना चाहते हैं जो सच का आईना देखना ही नहीं चाहते। उनके लिए आपसी कुर्ता घसीटन ही राजनीति का पर्याय बन चुका है।

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