इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर इंडस्ट्री पर गहराया संकट

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नई दिल्ली। देश की सभी प्रमुख इलेक्ट्रिक स्कूटर कंपनियों को ग्राहक जुटाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है। अप्रैल के बाद से कंपनियों की सेल लगातार गिर रही है। बृहस्पतिवार को जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वाहन कंपनियों को अब शोध एवं विकास (आरएंडडी) के माध्यम से कीमत कम करने पर ध्यान देना होगा। ‘केयर रेटिंग’ द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि विभिन्न कारणों से दोपहिया वाहनों (ईवी समेत) के लिए मध्यम अवधि में बिक्री कम रहने की आशंका हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, दोपहिया वाहनों के मुख्य खंड विशेष रूप से 75 सीसी से 110 सीसी की बाइक और 75 सीसी से 125 सीसी के स्कूटर की बिक्री में वित्त वर्ष 2018-19 से 2021-22 में बड़ी गिरावट देखी गई, जबकि पिछले वित्त वर्ष में इसमें कुछ सुधार देखा गया। रिपोर्ट में कहा गया कि इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों की बिक्री में चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में भी बड़ी गिरावट आई जब सरकार द्वारा मूल उपकरण निर्माता (ओईएम) के लिए सब्सिडी ‘फेम’ को दिया गया। रिपोर्ट में कहा गया कि सब्सिडी 15,000 किलोवाट घंटा से घटाकर 10,000 किलोवाट घंटा करने और फैक्टरी कीमत पर पूर्व में 40 प्रतिशत से घटाकर 15 प्रतिशत करने से दोपहिया वाहन बिक्री में अनिश्चितता आई है।
सोसायटी ऑफ मैन्युफैक्चरर्स ऑफ इलेक्ट्रिक वेहिकल्स (एसएमई‍वी) के अनुसार, उसके चार्टर्ड अकाउंटेंट के ऑडिट से संकेत मिलता है कि प्रभावित कंपनियों को 9,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान होने का अनुमान है। एसएमईवी के ‘चीफ एवान्जलिस्ट’ संजय कौल ने कहा कि हो सकता है इनमें से कई कंपनियां कभी इससे उबर न पाएं। केंद्रीय मंत्री महेंद्र नाथ पांडे को लिखे पत्र में उन्होंने कहा कि ओईएम (मूल उपकरण निर्माता) रोज बढ़ते घाटे के कारण बर्बाद होने की स्थिति में पहुंच रहे हैं। कौल ने कहा कि पत्र में प्रस्ताव दिया गया कि यदि मंत्रालय का इरादा इन ओईएम को सजा देना था, लेकिन अब यह उन्हें व्यावहारिक रूप से खत्म कर रही है। यह सजा 22 महीने से अधिक समय से जारी है जो खुद में एक अपराध है।
सरकार हीरो इलेक्ट्रिक, ओकिनावा ऑटोटेक, एम्पीयर ईवी, रिवोल्ट मोटर्स, बेनलिंग इंडिया, एमो मोबिलिटी और लोहिया ऑटो से सब्सिडी वापस मांगी है। भारी उद्योग मंत्रालय की जांच में इन कंपनियों के नियमों का उल्लंघन कर योजना के तहत राजकोषीय प्रोत्साहन का लाभ उठाने की बात सामने आई थी। योजना के नियमों के अनुसार, ‘मेड इन इंडिया’ (भारत निर्मित) घटकों का इस्तेमाल करके इलेक्ट्रिक वाहनों का उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहन की अनुमति दी गई थी, लेकिन जांच में पता चला कि इन सात कंपनियों ने कथित तौर पर आयातित घटकों का इस्तेमाल किया।

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