उत्तराखंड की राजनीति में इस समय दल बदल के मुद्दे पर महासंग्राम छिड़ा हुआ है। भाजपा और कांग्रेस के नेताओं ने आस्तीने चढ़ा ली, दोनों ही दल चुनाव से पहले एक दूसरे को पटखनी देने की चुनौती दे रहे हैं। यशपाल आर्य कि कांग्रेस में वापसी के बाद भाजपा नेता हैरान परेशान हैं उन्हें लग रहा है कि कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए नेता कभी भी पलटी मार सकते हैं। भले ही पूर्व सीएम हरीश रावत 2016 के बागी नेताओं को महापापी बताकर उनसे माफी मांगने की शर्त पर ही उनकी वापसी संभव बता रहे हो लेकिन भाजपा नेता इसे पूर्व कांग्रेसी नेताओं और हरीश रावत के बीच नूरा कुश्ती ही मानकर चल रहे हैं। यह एक बड़ा सच भी है कि यह नेता जो कहते हैं उसे करते नहीं हैं और जो करते हैं उसे कहते नहीं हैं। चंद दिन पूर्व जब पुष्कर धामी यशपाल आर्य से मिलने गए थे तब आर्य ने भी जोरदार शब्दों में यह कहा था कि उनके कांग्रेस में जाने की बातें अफवाह है। बीते कल भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक ने डॉ हरक सिंह से बंद कमरे में 1 घंटे वार्ता की। वार्ता के केंद्र में दलबदल के अलावा अन्य कोई मुद्दा नहीं हो सकता। उधर इस बात की भी चर्चाएं हो रही है की नैनीताल के कई भाजपा नेता जिनके साथ यशपाल आर्य के करीबी संबंध है कांग्रेस की सदस्यता ले सकते हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोदियाल ने बहुत पहले यह घोषणा कर दी थी कि 15 दिन में भाजपा को पता चल जाएगा कि किसका हाउसफुल है और किसका खाली है। गोदियाल अब कह रहे हैं कि यह खेल भाजपा ने शुरू किया था लेकिन इसे खत्म हम करेंगे। नेता भले ही इस दल बदल के खेल में मशगूल हो लेकिन राज्य के लोग इन मौकापरस्त और अवसरवादी नेताओं के बारे में क्या सोचते हैं यह अलग बात है। यह विडंबना ही है कि 2016 में जो कांग्रेसी नेता बगावत कर भाजपा में गए थे उनमें से अधिकांश 2017 के चुनाव जीत गए और भाजपा में भी वह सत्ता का सुख भोगने में सफल रहे। भले ही 2022 के चुनाव में भाजपा अबकी बार 60 पार के नारे के साथ उतर रही है लेकिन किसान आंदोलन महंगाई महामारी और बेरोजगारी से प्रभावित इस चुनाव में उसकी राह आसान रहने वाली नहीं है इसे भाजपा के नेता बखूबी जान समझ रहे हैं। ऐसी स्थिति में सत्ता के लिए राजनीति करने वाले नेता अगर कांग्रेस का हाथ थामते हैं तो यह कोई आश्चर्य की बात नही होगी। 2017 के चुनाव में पूर्व सीएम हरीश रावत का पूरा फोकस इस बात पर रहा था कि सूबे की जनता दल बदलूओं को सबक सिखाएं लेकिन जनता ने दल बदलूओं के गले में विजय माला डालकर उल्टे हरीश रावत को ही सबक सिखा दिया था। 2017 के चुनाव में जैसा कांग्रेस के साथ हुआ था वैसा 2022 के चुनाव में नहीं होगा? इसकी क्या गारंटी है यही कारण है कि भाजपा और कांग्रेस दल बदल को जीत की गारंटी के तौर पर देख रहे हैं। दल बदल के इस खेल में कौन अव्वल रहता है तथा जनता इन दलबदलुओं का इस बार कैसे स्वागत करती है यह चुनावी नतीजों से ही पता चल पाएगा। फिलहाल तो आप सिर्फ दल बदल के इस खेल का लुफ्त लीजिए।