सीएम पुष्कर सिंह धामी ने ईगास-बग्वाल को अवकाश की घोषणा की

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नई पीढ़ी हमारी लोक संस्कृति और पारम्परिक त्योहारों से जुङी रहे: सीएम

देहरादून। उत्तराखण्ड के लोकपर्व ईगास-बग्वाल को लेकर मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने राजकीय अवकाश की घोषणा की है। यह दूसरा मौक़ा होगा जब उत्तराखण्ड में लोकपर्व ईगास को लेकर अवकाश घोषित किया गया हो। इससे पूर्व पिछले वर्ष भी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा ईगास बग्वाल पर राजकीय अवकाश की घोषणा की गई थी। मुख्यमंत्री ने कहा कि ईगास बग्वाल उत्तराखण्ड वासियों के लिए एक विशेष स्थान रखती है। यह हमारी लोक संस्कृति का प्रतीक है। हम सब का प्रयास होना चाहिए कि अपनी सांस्कृतिक विरासत और परंपरा को जीवित रखें। नई पीढ़ी हमारी लोक संस्कृति और पारम्परिक त्योहारों से जुङी रहे, ये हमारा उद्देश्य है।

ट्वीट द्वारा यह जानकारी देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि “आवा! हम सब्बि मिलके इगास मनोला नई पीढ़ी ते अपणी लोक संस्कृति से जुड़ोला। लोकपर्व ‘इगास’ हमारु लोक संस्कृति कु प्रतीक च। ये पर्व तें और खास बनोण का वास्ता ये दिन हमारा राज्य मा छुट्टी रालि, ताकि हम सब्बि ये त्योहार तै अपणा कुटुंब, गौं मा धूमधाम से मने सको । हमारि नई पीढी भी हमारा पारंपरिक त्यौहारों से जुणि रौ, यु हमारु उद्देश्य च।”

एक पौराणिक मान्यता है कि जब भगवान राम 14 वर्ष बाद लंका विजय कर अयोध्या पहुंचे तो लोगों ने दिये जलाकर उनका स्वागत किया और उसे दीपावली के त्योहार के रूप में मनाया। लेकिन कहा जाता है कि गढ़वाल क्षेत्र में लोगों को इसकी जानकारी 11 दिन बाद मिली। इसलिए यहां पर दीपावली के 11 दिन बाद यह दीवाली (इगास) मनाई जाती है।
दूसरी और सबसे प्रचलित मान्यता के अनुसार गढ़वाल के वीर भड़ माधो सिंह भंडारी टिहरी के राजा महीपति शाह की सेना के सेनापति थे। करीब 400 साल पहले राजा ने माधो सिंह को सेना लेकर तिब्बत से युद्ध करने के लिए भेजा। इसी बीच बग्वाल (दीपावली) का त्यौहार भी था, परन्तु इस त्यौहार तक कोई भी सैनिक वापिस ना आ सका। सबने सोचा माधो सिंह और उनके सैनिक युद्ध में शहीद हो गए, इसलिए किसी ने भी दीपावली (बग्वाल) नहीं मनाई। परन्तु दीपावली के ठीक 11वें दिन माधो सिंह भंडारी अपने सैनिकों के साथ तिब्बत से दवापाघाट युद्ध जीत वापिस लौट आए। कहा जाता है कि युद्ध जीतने और सैनिकों के घर पहुंचने की खुशी में उस समय दिवाली मनाई थी। उस दिन एकादशी होने के कारण इस पर्व को इगास नाम दिया गया और उसी दिन से गढ़वाल क्षेत्र में दीपावली के 11 दिन बाद इगास पर्व मनाया जाता है। इगास पर्व के दिन लोग घरों की लिपाई-पुताई कर पारम्परिक पकवान बनाते है। गाय-बैलों की पूजा की जाती और रात को पूरे उत्साह के साथ गाँव में एक जगह इकठ्ठे होकर भैलो खेलते। भैलो का मतलब एक रस्सी से है, जो पेड़ों की छाल से बनी होती है। इगास-बग्वाल के दिन लोग रस्सी के दोनों कोनों में आग लगा देते हैं और फिर रस्सी को घुमाते हुए भैलो खेलते हैं।
ईगास बग्वाल के दिन भैला खेलने का विशेष महत्व है। यह चीड़ की लीसायुक्त लकड़ी से बनाया जाता है। यह लकड़ी बहुत ज्वलनशील होती है। इसे दली या छिल्ला कहा जाता है। जहां चीड़ के जंगल न हों वहां लोग देवदार, भीमल या हींसर की लकड़ी आदि से भी भैलो बनाते हैं। इन लकड़ियों के छोटे-छोटे टुकड़ों को एक साथ रस्सी अथवा जंगली बेलों से बांधा जाता है। फिर इसे जला कर घुमाते हैं। इसे ही भैला खेलना कहा जाता है।

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