देहरादून। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कुर्सी संभालते ही कहा था कि उनके पास समय कम है और काम ज्यादा। इसलिए वह बातें कम और काम ज्यादा करेंगे। लेकिन सरकार का यह दावा काम करने तक कम पहुंच पा रहा है सिर्फ वायदे और बातों तक ही सीमित होकर रह गया है। जिसका उदाहरण है फिक्स चार्ज माफ करने की घोषणा।
मुख्यमंत्री ने पद संभालते ही कोरोना की मार झेल रहे सूबे के लोगों और व्यवसायियों को थोड़ी राहत देने की घोषणा करते हुए बिजली बिल में लिए जाने वाले फिक्स चार्ज को माफ करने और लेट फीस न देने की घोषणा की थी। मुख्यमंत्री ने विधानसभा में यह घोषणा की थी कि राज्य के बिजली उपभोक्ताओं से अगले 6 माह तक कोई फिक्स चार्ज नहीं लिया जाएगा तथा जिन उपभोक्ताओं का बिल पेंडिंग पड़ा है उन्हें भी लेट फीस नहीं देनी होगी जितना बिल होगा उतना ही पैसा वह जमा कर सकते है।
बिजली बिलों को लेकर कई तरह की शिकायतें समय—समय पर आती रहती हैं। बिना रीडिंग लिए ही अनाप—शनाप बिल भेजे जाने और उपयोग से अधिक बिल आने की कई तरह की परेशानियां बिजली उपभोक्ताओं झेल रहे हैं। वहीं उन्हें वर्तमान में जो बिल भेजे जा रहे हैं उन सभी बिलों में फिक्स चार्ज तथा लेट फीस भी ली जा रही है। सवाल यह है कि क्या सीएम और सत्ता में बैठे मंत्री सिर्फ लोगों को धोखा देने के लिए ऐसी घोषणा करते हैं।
अभी बीते दिनों सीएम व बाल एवं महिला कल्याण मंत्री ने कोरोना काल में अपने मां बाप को खो चुके बच्चों के पालन पोषण के लिए वात्सल्य योजना का शुभारंभ किया था। इन बच्चों के मामा व बुआ बनने की बातें सीएम और मंत्री ने की इसके बाद इसे भूल गए। बाद में मंत्री रेखा आर्य ने इस पर नाराजगी जताई तब कहीं जाकर शासन में इसकी फाइल आगे बढ़ी। क्या यही है सरकार का काम ज्यादा व बातें कम करने के दावे का सच।