उत्तराखंड में आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए राष्ट्रीय पार्टियों के साथ ही क्षेत्रीय दल उक्रंाद भी सक्रिय हो गया है। जैसे—जैसे चुनाव का समय नजदीक आ रहा है वैसे—वैसे चुनावी सरगर्मियंा भी रौ में आने लगी है। राष्ट्रीय दलों ने जहां एक दूसरे के खिलाफ आरोप लगाने तय कर लिए हैं वहीं क्षेत्रीय दल भी पीछे नहीं रहना चाहता है। फिर चाहे सरकार पर आरोप लगाने की बात हो या फिर विपक्ष को कटघरे में खड़ा करने का मामला हो। वैसे तो राज्य में उत्तराखंड क्रांति दल क्षेत्रीय दल बनने की स्थिति में भी नहीं है लेकिन फिर भी राज्य प्राप्ति आंदोलन के शुरुआती दिनों से दल के कार्यकर्ता सक्रिय है। संख्या भले ही कम है लेकिन दल के नेता से लेकर कार्यकर्ता तक किसी न किसी तरह से दल का वर्चस्व बचाने में लगे हुए हैं। हालांकि कुछ नेताओं ने सरकार में पद पाते ही पार्टी से किनारा करने में भी देर नहीं लगाई लेकिन सत्ता से हटने के बाद जब कहीं से कोई ठौर नहीं मिला तो वापसी अपने दल में ही करी। दल के कार्यकर्ताओं का भी दिल बड़ा है जो उन्होंने एक समय में आंख तरेरने वाले अपने नेता को फिर से सर आंखों पर बैठा लिया। अब भले ही दल के पहले वाले दिन लौट के न आए लेकिन राजधानी में पैर जमाने की कोशिश में उक्रांद के नेता जुटे हुए हैं। चुनाव में जैसे—जैसे दल के विधायक कम होते गए वैसे—वैसे दल के पास चुनाव में प्रत्याशी उतारने के लिए भी कोई नहीं बचा। यहां तक कि जबरन अपने लोगों का नामांकन करवाया गया और चुनाव लड़ाया गया। चुनाव में इनका क्या हाल हुआ यह सब के सामने हैं। अब एक बार फिर चुनाव को देखते हुए दल के कार्यकर्ता सक्रिय हो गए हैं। कभी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कभी विपक्ष को कटघरे में खड़ा करने के लिए उक्रांद के नेता हमेशा जुटे रहते हैं। हालांकि राष्ट्रीय पार्टियों को दल के इन आरोपों—प्रत्यारोपों से कोई सरोकार ही नहीं रह गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि उक्रांद द्वारा उठाए जा रहे मुद्दों या दल की सक्रियता सत्ता और विपक्ष के लिए कोई मायने ही नहीं रखती है। फिर भी खुद को क्षेत्रीय दल के रूप में स्थापित करने और चुनाव के लिए खुद को खड़ा करने में दल के लोग जुटे हुए हैं। कुल मिलाकर चुनावी बेला नजदीक देखते हुए उक्रांद के नेता और कार्यकर्ता सक्रिय हो गए हैं।