कर्नाटक में भाजपा की करारी हार, पूर्ण बहुमत से कांग्रेस सत्ता में

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आखिर बजरंगबली कब तक करेंगे भाजपा की नैया पार

भ्रष्टाचार, बेरोजगारी व महंगाई के मुद्दे धर्म व सांप्रदायिक मुद्दों पर पड़े भारी

बेंगलुरु। कर्नाटक विधानसभा के चुनावी नतीजों ने भाजपा को जोरदार झटका दिया है। उत्तराखंड की तरह कर्नाटक में रवायत बदलने का दावा करने वाली भाजपा ने सोचा भी नहीं होगा कि जिन बजरंगबली को शिवसेना का हिमायती बनकर वह चुनाव में इस्तेमाल कर रहे हैं वह बजरंगबली उसकी ही कमर तोड़ कर रख देंगे। कर्नाटक की 224 सदस्यीय विधानसभा जहां भाजपा 70 से भी कम सीटों पर सिमट कर रह गई वहीं कांग्रेस प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज होने में सफल होगी। बहुमत के जरूरी 113 से भी 20 सीटें आगे जाकर कांग्रेस एक मजबूत सरकार बनाने की स्थिति में पहुंच चुकी है। वही सत्ता की चाबी हाथ लगने का सपना देखने वाली जेडीएस के खाते में भी सिर्फ 20—22 सीटें ही आती दिख रही हैं। खास बात यह है कि इस चुनाव को 2024 के चुनाव का लिटमस टेस्ट मानकर चलने वाली भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने जिस तरह से इस चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी और चुनाव में धार्मिक और सांप्रदायिक मुद्दों को हवा देने में कोई कोर कसर उठाकर नहीं रखी थी उसके बाद भी जिस तरह के नतीजे आए हैं वह भाजपा को यह सबक सिखाने के लिए काफी है कि आम जनता के हितों के मुद्दों से ध्यान भटका कर तथा धर्म व सांप्रदायिक मुद्दों के जरिए वोटों के ध्रुवीकरण कराकर आप अधिक समय तक कामयाब नहीं हो सकते हैं। भाजपा ने लिंगायतों का वोट पाने के लिए मुसलमानों का 4 फीसदी आरक्षण खत्म करने और बजरंग दल के हिमायती बनकर बजरंगबली को चुनावी मुद्दा बनाने का जो प्रयास किया गया उसका जनता ने क्या जवाब दिया है यह भाजपा के सामने आ चुका है। कर्नाटक में भाजपा गठबंधन की सरकार के समय जो भ्रष्टाचार किया गया वह एक बड़ा मुद्दा था। वही बेरोजगारी व महंगाई जैसे मुद्दों पर भाजपा अब एक शब्द भी बात करने को तैयार नहीं है उन्हीं मुद्दों पर कांग्रेस इस चुनाव में भाजपा को पटखनी देने में कामयाब रही है। सवाल यह है कि भाजपा की बजरंगबली भी कब तक मदद करते रहेंगे और भाजपा आखिर कब तक मंदिर—मस्जिद और देवी—देवताओं को अपनी राजनीति का केंद्र बिंदु बनाए रखेगी तथा कब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव जीतती रहेगी जबकि भाजपा शासित राज्यों की सरकारें और नेता काम करने की वजाय सिर्फ बातें और बातें ही करते रहेंगे।
हिमाचल में रवायत बदलने में नाकाम रही भाजपा अब हिमाचल के बाद कर्नाटक में भी रवायत बदलने में फेल हो चुकी है। कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देखने वाले प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा को इस हार के बाद अपनी नीतियों और रीतियों पर नए सिरे से आत्ममंथन करने की जरूरत है।

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