राजनीति देश के लिए या वोट के लिए? यह सवाल आज इसलिए अहम है क्योंकि सत्ता में बैठे लोगों द्वारा देशवासियों को यह सवाल करने पर मजबूर किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को और उनकी सरकार को एक साल लंबे चले किसान आंदोलन का सच समझ क्यों नहीं आया? क्यों उन्हें अपने ही बनाए उन तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने पर विवश होना पड़ा जिन्हें किसान काले कानून बता रहे थे? क्यों आज वह सच्चे मन, सच्चे हृदय से देशवासियों से माफी मांगने पर मजबूर हुए हैं? क्या इसका कारण अपनी भूल का अहसास है अथवा उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड आदि राज्यों में होने वाले वह चुनाव जिसमें किसानों की नाराजगी के कारण अपनी सत्ता जाती दिख रही थी? अगर यह भूल का अहसास रहा होता तो किसानों को वह यातनाएं नहीं सहनी पड़ सकती थी जो उन्होंने अपने इस ऐतिहासिक लंबे आंदोलन के दौरान सही। सत्ताधारियों ने इस आंदोलन का दमन करने के लिए क्या—क्या तरीके नहीं अपनाएं, किसानों को गुंडा, मवाली व आतंकवादी कहने से लेकर उनके सर पर विदेशी हाथ होने तक के आरोप लगाए गए हैं उनको गाड़ियों से रौंदा और कुचला गया। लाठी डंडे बरसाए जाने व मुकदमा दर्ज कर जेलों में डाले जाने तक क्या कुछ नहीं किया गया। यह अफसोस जनक है कि स्वतंत्रता के बाद सबसे लंबे चले इस आंदोलन में प्रधानमंत्री चुप्पी साधे रहे और सत्ता में बैठे लोग कृषि कानूनों को वापस न लेने की जिद पर अड़े रहे। फिर पांच राज्यों में चुनाव से ऐन पूर्व प्रधानमंत्री का विवेक अचानक कैसे जाग उठा? गुरु पर्व पर वह अचानक टीवी पर प्रकट हुए और देशवासियों से माफी मांगते हुए तीनों कृषि कानूनों की वापसी का एलान करते दिखे। क्या यही है देश और समाज के लिए की जाने वाली राजनीति? अब मोदी सरकार जिसने इसे अपनी नाक और प्रतिष्ठा का सवाल बना रखा था रातो रात उसका ऐसा ह्रदय परिवर्तन स्वाभाविक सवाल खड़े करता है। आज प्रधानमंत्री के समर्थक इसे उनका मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं और भाजपा नेताओं द्वारा उनके इस फैसले की सराहना करते हुए लोगों से भी अपील की जा रही है कि किसानों व देश की जनता को इस फैसले का स्वागत करना चाहिए। इस अपील की उन्हें जरूरत ही क्यों पड़ी है? इसकी वजह भी साफ है वह भी जानते हैं कि जनता सब जानती समझती है कि इस यू—टर्न के पीछे मोदी और भाजपा की क्या मंशा और मजबूरी रही है। किसानों के मन में दर्द और पीड़ा है उसे कम करना और उनकी सहानुभूति और वोट हासिल करना बहुत आसान नहीं होता। भले ही भाजपा यह सोचे कि अब सब ठीक हो जाएगा और उसने विपक्षी दलों का एक बहुत मारक मुद्दा समाप्त कर दिया है लेकिन इस आंदोलन के दौरान मारे गए 700 किसानों का दर्द कम नहीं है और अभी एमएसपी का मुद्दा भी बाकी है। फिर भी भाजपा की कोशिश है कि वह इस फैसले से स्थिति को कुछ हद तक तो नियंत्रण में लाने में सफल हो ही जाएगी। भले ही परिणाम चाहे जो रहे लेकिन वोट के लिए की जाने वाली ऐसी राजनीति देश और समाज के लिए हितकर कतई नहीं कही जा सकती है। फिर भी मोदी सरकार का फैसला स्वागत योग्य है देर से ही सही।