राजनीति जन सरोकारो के लिए या फिर सिर्फ सत्ता के लिए यह सवाल हम यहां इसलिए उठा रहे हैं कि कल जब संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति के अभिभाषण पर विपक्ष के सवालों का जवाब देते हुए बोल रहे थे और अपनी सरकार की 10 सालों की उपलब्धियों का बखान करते हुए यह बता रहे थे कि उनकी डबल इंजन सरकारों ने इंफ्रास्ट्रेक्चर के विकास में क्या कृतिमान स्थापित किए हैं, उस समय उत्तर प्रदेश के हाथरस के फुलरई गांव में आयोजित भोले बाबा के एक धार्मिक कार्यक्रम में मची भगदड़ से लोग मर रहे थे और उन्हें अस्पताल तक पहुंचाने के लिए चार एंबुलेंस तक उपलब्ध नहीं थी तथा मृतक और घायलों को लोग निजी वाहनों में लादकर जिस अस्पताल तक ले जा रहे थे वहां न कोई डॉक्टर था और न अस्पताल में दवायें थी। जिनकी सांसे चल भी रही थी उनकी सांस भी इलाज न मिल पाने के कारण थमती चली गई और मौत का आंकड़ा शाम होते—होते 100 के पार चला गया। इस दर्दनाक हादसे के घंटों बाद जब जिले के आला अधिकारी पहुंचे तो दुर्घटना के शिकार हुए लोगों व क्षेत्र वासियों ने उन्हें घेर लिया जो जांच की बात कहकर टाल—मटोल करने में लगे थे। भले ही यह एक दुर्घटना सही लेकिन देश की उन स्वास्थ्य सेवाओं और इंफ्रास्टे्रक्चर के विकास की कलई खोलने के लिए हाथरस की यह दुर्घटना बहुत काफी है। सरकार संसद में किस विकसित भारत का सपना लोगों को दिखा रही है। जहां लोगों को इलाज नहीं मिल सकता और अस्पतालों में डॉक्टर तक उपलब्ध नहीं है दावों और उपकरणों की तो बात ही छोड़िए उससे भी शर्मनाक बात यह है कि दुर्घटना की सूचना मिलने के बाद भी प्रधानमंत्री का भाषण जारी रहता है और मरने वालों की सुध नहीं ली जाती है। जिस धर्म और आस्था के नाम पर राजनीति तो की जाती है उस समय अगर किसी धार्मिक कार्यक्रम में इतनी बड़ी दुर्घटना होने पर संसद का कार्यवाही और प्रधानमंत्री का भाषण जारी रहता है तो यह कैसी राजनीति है जिसका सरोकार जनता से नहीं सिर्फ चुनावी जीत तक ही सीमित होकर रह गया है। जिन्हें मरना था वह मर चुके हैं। जो घायल है उनके लिए 50 हजार और मृतक आश्रितों के लिए दो—दो लाख मुआवजे की घोषणा हो चुकी है। रही बात जांच की तो देश में आए दिन तमाम दुर्घटनाएं होती रहती है जिसके बाद जांच के सिवाय किया ही क्या जा सकता है। संसद में यह बता पाना कि हमारी इतनी राज्यों में सरकार है हम यहां जीते हम वहां जीते और लोगों ने हमें अगर तीसरी बार भी सत्ता में आने का जनादेश दिया है तो यह हमारी बड़ी उपलब्धि है लेकिन उस जनता का क्या जिसने आपको सत्ता में भेजा है उनकी जान माल की सुरक्षा की गारंटी कौन लेगा? क्यों आज तक यह सुनिश्चित नहीं किया जा सका है कि इस तरह के हादसे फिर न हो। सवाल यह है कि इन मौंतो के लिए कौन जिम्मेदार है क्यों इतनी बड़ी संख्या में लोगों को इकट्ठा होने दिया गया प्रशासन द्वारा उनकी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं किए गए? क्यों घायलों को उचित इलाज नहीं मिल सका, क्या इन सवालों का जवाब देने के लिए कोई सामने आएगा?