बीते कल केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने देहरादून में एक स्कूलीय सांस्कृतिक कार्यक्रम में घोषणा की कि देश में बहुत जल्द ही 401 नए एकलव्य स्कूल और खोले जाएंगे तथा इन स्कूलों में 38 हजार शिक्षकों की भर्ती की जाएगी। अभी चंद दिन पूर्व ही केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान भी देहरादून आए थे जहां नूनुरखेड़ा स्थित शिक्षा निदेशालय में आयोजित एक कार्यक्रम में उनके द्वारा राज्य में 141 पीएम श्री विघालय खोलने की घोषणा की गई थी। उनका कहना था कि विघालयी शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए राज्य के हर एक ब्लॉक में दो यह स्कूल खोले जाएंगे। भले ही उन्होंने इस बात की घोषणा नहीं की कि इन स्कूलों में कितने शिक्षकों की भर्ती होगी लेकिन स्वाभाविक है कि जब 141 स्कूल खुलेंगे तो उनके लिए शिक्षक भी चाहिए होंगे। उत्तराखंड में मौजूदा समय में चार एकलव्य मॉडल रेजिडेंशियल स्कूल चल रहे हैं राज्य में और नए कितने एकलव्य स्कूल खोले जाएंगे अभी इसका पता नहीं है। अभी कुछ दिन पहले खबर आई थी कि राज्य सरकार राज्य में चल रहे 189 अटल उत्कृष्ट विघालयों को बंद करने जा रही है या इन्हें फिर उत्तराखंड बोर्ड से सबद्ध करने जा रही है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि 2021—22 में सरकार द्वारा राज्य के 189 स्कूलों को अटल उत्कृष्ट विघालयो में तब्दील कर इन स्कूलों में सीबीएसई सिलेबस लागू किया गया था। लेकिन परिणाम यह रहा कि इन स्कूलों के छात्र सीबीएसई बोर्ड के अनुकूल बेहतर रिजल्ट नहीं दे पा रहे हैं। अतः सरकार अब इन्हें फिर उत्तराखंड बोर्ड के अधीन लाने वाली है। इस खबर के प्रकाश में आने पर कुछ हंगामा खड़ा हुआ तो राज्य के शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत ने अटल उत्कृष्ट स्कूलों को खत्म न करने की घोषणा की थी। बात सिर्फ स्कूलों के खोलने और उन्हें उत्कृष्ट बनाने की या इन स्कूलों में रोजगार देने तक ही सीमित नहीं है राज्य के मदरसों को भी मॉडर्न मदरसे बनाने और उनमें सीबीएसई बोर्ड का सिलेबस लागू करने की भी हो रही है। मदरसे में पढ़ने वाले छात्रों के एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में लैपटॉप होने के सुनहरे भविष्य के सपने की भी हो रही है। शिक्षा क्षेत्र में बेहतरीन हो इससे ज्यादा अच्छी बात भला और क्या हो सकती है लेकिन सवाल यह है कि क्या वास्तव में शिक्षा क्षेत्र वैसी बेहतरीन हो भी रही है या सिर्फ बेहतरीन होने का ढोल ही पीटा जा रहा है। राज्य में 2003 में सभी राज्य के 13 जिलों में नवोदय विघालय स्थापित करे गए थे। लेकिन 2003 से लेकर 2023 तक सिर्फ 5 नवोदय विघालय ऐसे हैं जिनके पास अपने भवन हैं शेष आठ नवोदय विघालय आज तक किराए के भवनों में चल रहे हैं। राज्य के सैकड़ो स्कूल ऐसे हैं जिनमें न पेयजल की व्यवस्था है और न शौचालय की सुविधा। राज्य गठन के बाद भी राज्य में सरकारी स्कूलों के भवनों की जर्जर स्थिति है। सैकड़ो स्कूलों में ताले पड़ चुके हैं और सैकड़ो स्कूल छात्र—छात्राओं विहीन व शिक्षक विभिन्न हो चुके हैं अथवा एक शिक्षक के भरोसे ही चल रहे हैं। हर बार चुनाव आने से पहले तमाम स्कूलों के खोले जाने और सैकड़ो और हजारों शिक्षकों की भर्ती की घोषणाएं की जाती हैं लेकिन राज्य गठन के 23 साल बाद भी राज्य की शिक्षा व्यवस्था जिस बदहाल स्थिति में है उसके लिए सिर्फ नाम बड़े और दर्शन छोटे की कहावत ही कहीं जा सकती है। अर्जी—फर्जी दस्तावेजों पर शिक्षकों की भर्ती से लेकर तमाम तरह के व्यापक स्तर पर अनिमितताओं के बीच यह बेहतरी के दावे कितने विश्वसनीय हैं? यह बड़ा सवाल है।