राज्य गठन के बाद से उत्तराखंड में भ्रष्टाचार की अविरल धारा बह रही है। भ्रष्टाचार की गंगा में गोते लगाने वाले नेताओं और अधिकारियों का गठजोड़ इस कदर मजबूत है कि उनका कोई बाल बांका नहीं कर सकता है। नेताओं के लिए राज्य का यह भ्रष्टाचार सिर्फ एक चुनावी मुद्दा रहा है बाकी सब बातों से उनका कोई सरोकार नहीं रहा है। वर्तमान भाजपा सरकार ने 2017 के अपने चुनावी घोषणा पत्र में सरकार बनने पर 100 दिन में लोकायुक्त गठन करने का वायदा किया था लेकिन सरकार अपना पूरा कार्यकाल बीत जाने तक भी लोकायुक्त नहीं ला सकी। पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत जो कभी ढैंचा बीज घोटाले में खुद भी आरोपी रहे हैं, ने जब सत्ता संभाली थी तो शपथ ग्रहण के बाद भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस को अपनी सरकार की प्राथमिकता बताया गया था लेकिन अपने पहले विधानसभा सत्र में लोकायुक्त प्रस्ताव का बिल लाने वाले त्रिवेंद्र सिंह जब ऐसा नहीं कर सके तो वह अपने बचाव में यह कहते दिखे कि जब राज्य में भ्रष्टाचार ही नहीं रहा तो लोकायुक्त की क्या जरूरत है? यह अलग बात है कि वर्तमान में अब वह सीएम नहीं रहे हैं लेकिन सूबे में अभी भी भाजपा की ही सरकार है तथा उनकी पार्टी का ही सीएम है। उन्हें बीते कल एक सचिवालय के समीक्षा अधिकारी की उस गिरफ्तारी पर गौर करने की जरूरत है जिसे 75 हजार की रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा है, क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है। खास बात यह है कि इन नेताओं और अधिकारियों द्वारा भ्रष्टाचार के मामलों पर कबूतर की तरह आंखें बंद क्यों कर ली जाती है जिसके सामने बिल्ली आकर खड़ी हो जाए, सरकार को अपनी नाक के नीचे होने वाला यह भ्रष्टाचार भी दिखाई नहीं देता है। सिंचाई विभाग का सचिवालय में बैठा एक अनुभाग अधिकारी अनिल पुरोहित अपने समीक्षा अधिकारी कमलेश्वर को आदेश देता है कि जाओ सचिवालय के बाहर जाकर रिश्वत की रकम ले आओ। खास बात यह है कि रिश्वत का सौदा भी यह अधिकारी भ्रष्टाचार के किसी मामले में फंसे इंजीनियर से सचिवालय में ही करते हैं। जैसे सचिवालय, सचिवालय न होकर कोई रिश्वतखोरी का अड्डा हो। रिश्वत भले ही सचिवालय के बाहर ली जा रही थी लेकिन रिश्वत का पैसा लेकर समीक्षा अधिकारी सचिवालय ही जाता और अपने साहब के साथ इसका बंटवारा करता। अभी कोरोना काल में हरिद्वार कुंभ के दौरान फर्जी टेस्टिंग का एक बड़ा घोटाला सामने आया था, रिश्वतखोरी और यह घोटाले अगर किसी नेता या सरकार को दिखाई देते होते तो शायद बीसी खंडूरी के कार्यकाल में ही राज्य में लोकायुक्त का गठन हो गया होता। आज तक राज्य में लोकायुक्त इन नेताओं ने ही नहीं बनने दिया है क्योंकि वह अच्छी तरह जानते हैं कि अगर भ्रष्टाचार पर कुछ सख्त कार्रवाई का जरिया बना तो उनके जेल जाने का रास्ता साफ हो जाएगा। चुनाव में एक—दूसरे की पार्टी के शासनकाल के भ्रष्टाचारों की लिस्ट तैयार करने तक ही यह मामला ठीक है इसे सूबे के अधिकारी व नेता अच्छे से जानते हैं। यही कारण है कि राज्य गठन के 2 दशकों में भ्रष्टाचार की खूब जय जयकार हो रही है।