देहरादून। हरीश रावत ने पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को नसीहत दी है कि वह पार्टी का माहौल न बिगाड़े। इधर—उधर की बातें करने और पोस्टर और बैनरोंं में बड़े—बड़े फोटो छपवाने से कोई बड़ा नेता नहीं बनता है। जरूरत इस बात की है कि सब मिलकर काम करें।
हरीश रावत को यह नसीहत अपनी पार्टी के नेताओं को क्यों देने की जरूरत पड़ी अगर इस बात को समझना है तो एक बार कांग्रेस प्रदेश मुख्यालय की स्थिति पर गौर करना जरूरी है जो चुनाव समितियों व प्रदेश अध्यक्ष के नाम की घोषणा के बाद बैनर—पोस्टरों से अटा पड़ा है। नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ फोटो दिखाने के लिए बैनर लगाने की होड़ लगी हुई है।
प्रीतम सिंह को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी से हटाने व नेता विपक्ष बनाए जाने तथा हरीश रावत को प्रचार अभियान की कमान सौंपें जाने के बाद उनके समर्थकों द्वारा उन्हें सीएम का चेहरा घोषित करने की भी होड़ लगी हुई है। जिसे लेकर कांग्रेस के अंदर का माहौल गरमाया हुआ है। बड़े नेताओं की हरीश से नाराजगी की खबरों के बीच आज दिल्ली दरबार से हुए दखल के बाद हरीश रावत को भी यह समझ आ गया है कि पार्टी में उनके समर्थक ही उनके लिए समस्याएं खड़ी कर रहे हैं। यही कारण है कि अब उन्हें खुद भी इन्हें नसीहत देनी पड़ रही है कि वह पार्टी का माहौल खराब न करें।
कांग्रेस के लिए चुनौती चुनाव जीतने की है वह मुख्यमंत्री भी तभी बन सकते हैं जब पार्टी चुनाव जीतेगी। जिस तरह का घमासान पार्टी में हो रहा है वैसी स्थिति में चुनाव नहीं जीता जा सकता है। चुनाव प्रचार की जिम्मेवारी का मतलब यह है कि चुनाव जिताने का दायित्व उन्हीं के कंधों पर है। जिसे पूरा करने के लिए पार्टी में एकता जरूरी है देखना है कि उनकी नसीहत का कार्यकर्ताओं व नेताओं पर कितना असर होता है।