चुनावी फेरबदल

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केंद्र और सूबे की राजनीति में बड़े बदलाव की बयार बह रही है उसका सीधा संबंध 2022 में पांच राज्यों में होने वाले चुनाव है जिनमें उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश भी शामिल है। मोदी मंत्रिमंडल में कल किया गया पहला और बड़ा बदलाव किस उद्देश्य से किया गया है यह किसी से भी छिपा नहीं है। इस बदलाव में भाजपा ने सबसे अधिक तवज्जोह उत्तर प्रदेश को दी है जहां से भाजपा और सहयोगी दलों के सर्वाधिक 7 सदस्य मंत्रिमंडल में शामिल किए गए हैं। केंद्रीय राजनीति और सत्ता का सपना बिना उत्तर प्रदेश में बड़ी सफलता के पूरा नहीं हो सकता है। इस बदलाव में जातिगत और क्षेत्रगत सभी कारणों को साधने की कोशिश की गई है। जहां तक बात उत्तराखंड की है भले ही यहां लोकसभा की सिर्फ 5 सीटें ही हैं लेकिन इस सीटों की अहमियत इसलिए अधिक हो जाती है क्योंकि इन सभी सीटों पर कभी भाजपा और कभी कांग्रेस का कब्जा रहा है। भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में इन सभी 5 सीटों पर जीत दर्ज की इससे पूर्व हुए चुनाव में सभी 5 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा था। वर्तमान मोदी सरकार में डॉ निशंक को कैबिनेट में शामिल किया गया था जिन्हें हटाकर अब नैनीताल से सांसद अजय भटृ को मंत्रिमंडल में लिया गया है। अजय भटृ ऐसे पहले सांसद हैं जो पहली बार सांसद बने और अब मंत्री भी बन गए। डॉ निशंक को हटाए जाने और भटृ को मंत्रिमंडल में लिए जाने के पीछे क्या कारण रहा कोई नहीं जानता लेकिन अब मुख्यमंत्री पुष्कर धामी और कैबिनेट मंत्री अजय भटृ जो दोनों ही कुमाऊं मंडल से आते हैं तथा ब्राह्मण नेता है गढ़वाल मंडल के नेता स्वयं की उपेक्षा का आरोप लगा रहे हैं। गढ़वाल मंडल में 40 विधानसभा सीटें हैं जबकि कुमाऊं में 30 सीटें आती है। भाजपा ने अब 40 की बजाय 30 सीटों पर ही ध्यान क्यों केंद्रित कर रखा है यह सवाल स्वभाविक है। मदन कौशिक जो वर्तमान में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष है तराई क्षेत्र से आते हैं फिर गढ़वाल के हिस्से में क्या रहा? यह सवाल हर कोई पूछ रहा है। आमतौर पर यही देखा गया है कि हर पार्टी ठाकुर ब्राह्मण और गढ़वाल कुमाऊँ से अध्यक्ष व सीएम रखकर इस संतुलन को बनाए रखती आई है। लेकिन इस बार भाजपा नई रणनीति पर काम कर रही है। जिसका कारण है भाजपा का पूरा फोकस सिर्फ पूर्व सीएम हरीश रावत पर होना। भाजपा का मानना है कि इंदिरा हृदेश के निधन के बाद अब सिर्फ हरीश रावत ही ऐसे नेता बचे हैं जिनकी घेराबंदी सबसे अहम है। कुमाऊं की राजनीति में सबसे मजबूत पकड़ रखने वाले हरीश रावत की घेराबंदी के लिए ही भाजपा ने यह बिसात बिछाई है। देखना होगा कि भाजपा की इस नई रणनीति का उसे कितना फायदा मिलता है।

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