भले ही उत्तराखंड की तीरथ सरकार कोरोना के बेहतर प्रबंधन पर अपनी पीठ थपथपा रही हो और मुख्यमंत्री अपने 100 दिन के कार्यकाल में स्वास्थ्य सेवाओं को 10 गुना बेहतर करने का दावा कर रहे हो लेकिन बीते कल राज्य के हाई कोर्ट द्वारा जिस तरह से इस मुद्दे पर सरकार को लताड़ा गया है वह यह बताने के लिए काफी है कि सरकार बातें ज्यादा और काम कम कर रही है। प्रदेश में दूसरी लहर के दौरान व्यापक स्तर पर हुई मौतों के लिए अदालत ने सरकार को न सिर्फ जिम्मेवार माना है अपितु सरकार द्वारा कोर्ट में पेश किए गए 700 पेज के शपथ पत्र को भ्रामक बताते हुए यहां तक कहा है कि सरकार कोर्ट को गुमराह कर रही है। यह अत्यंत की हास्य पद बात है कि सरकार को यह तक पता नहीं है कि दूसरी लहर के दौरान राज्य में कोरोना से कितनी मौतें हुई हैं। अदालत ने सूबे की नौकरशाही को भी महामारी काल में काम करने की बजाय बाधा डालने वाला बताया है। सरकार के आपदा प्रबंधन और कामकाज के रवैया से कोर्ट इस कदर नाराज है कि उसने साफ कर दिया है कि सरकार चार धाम यात्रा को स्थगित करें या फिर उसकी तिथि को आगे बढ़ाएं। कोर्ट ने तीसरी संभावित लहर से बचने की तथा चार धाम यात्रा की प्रबंधन पर पुनः 7 जुलाई को राय पत्र देने को कहा है। कोर्ट का साफ कहना है कि हम आपका कुंभ के दौरान प्रबंधन देख चुके हैं अभी गंगा दशहरे के अवसर पर हरिद्वार में स्नान करने वालों की भीड़ थी लेकिन शासन—प्रशासन कहीं नहीं था। यह हैरान करने वाला ही है कि सरकार और अधिकारियों को यह तक पता नहीं है कि उनके पास कितने आईसीयू बेड है कितने बाल विशेषज्ञ डॉक्टर हैं, कितने वेंटिलेटर बेड है। पहाड़ी जनपदों में स्वास्थ्य सेवाओं की क्या स्थिति है यह किसी से छिपा नहीं है। अदालत का कहना है कि अगर तीसरी लहर में पिथौरागढ़ या बागेश्वर में किसी बच्चे को इलाज की जरूरत पड़ती है तो परिजन उसे लेकर कहां भागे फिरेंगे? राज्य में एंबुलेंस सेवा की बात सरकार करती है जब दिल्ली जैसे शहरों में महामारी काल में एंबुलेंस नहीं मिल पाती है तो राज्य के पहाड़ों में एंबुलेंस से किसी मरीज को सुशीला तिवारी अस्पताल पहुंचाने की बात कितनी सच हो सकती है। दूसरी लहर के दौरान जब पीड़ितों को अस्पतालों में बेड नहीं मिले तब यह भला कैसे माना जा सकता है कि तीसरी लहर में न बैड की कोई किल्लत होगी न एंबुलेंस की और न डॉक्टरों व दवाओं की। अदालत ने सरकार को उस डेल्टा प्लस वैरियंट के बारे में सतर्क किया है जिसका खतरा देश पर मंडराता दिख रहा है। देश में अब तक 42 मामले सामने आ चुके हैं सवाल यह है कि कुंभ मेले में फर्जी जांच पर अपनी किरकिरी कराने और अदालत द्वारा लगाई गयी कड़ी फटकार के बाद क्या सरकार नींद से जागेगी और संभावी तीसरी लहर से बचने के लिए जमीन पर कोई ठोस तैयारी करेगी? या फिर सिर्फ बातें ही करती रहेगी।