सत्ता में बैठे नेताओं के मुंह से भले ही देश में बढ़ रही बेतहाशा मंहगाई को लेकर एक भी शब्द न निकले और उनके माथे पर कोई शिकन तक दिखायी न दे रही हो लेकिन बढ़ती मंहगाई ने आम आदमी के जीवन को बुरी तरह से प्रभावित किया है। देश में बढ़ती पेट्रोलियम पदार्थो और गैस तथा आम उपभोग की वस्तुओं की कीमत जिस रफ्तार से बढ़ी है और हर रोज नये रिकार्ड बना रही है उसे लेकर अर्थशास्त्री और समाज शास्त्री सभी हैरान परेशान है। निश्चित तौर पर ऐसा अगर किसी अन्य दल की सरकार के कार्यकाल में हुआ होता तो भाजपा ने आसमान सर पर उठा लिया होता। इस बढ़ती हुई मंहगाई का आलम यह है कि इसका प्रभाव देश की अर्थनीतियों और विकास पर भी पड़ रहा है। बीते कल आरबीआई के गर्वनर शशिकांत दास ने कहा कि खुदरा महंगाई दर में हो रही बेतहाशा वृद्धि देश के विकास को प्रभावित कर रही है और मौडिक नीतियों पर भी इसका दबाव है। उन्होने कहा कि अगले साल खुदरा महंगाई दर छह फीसदी से ऊपर निकल सकती है। खास तौर पर इस मंहगाई दर की वृद्धि में पेट्रोल डीजल और रसोई गैस एंव खाघ तेलों की मूल्यवृद्धि की सबसे अहम भूमिका रही है। देश बीते डेढ़ साल से कोरोना की मार झेल रहा है। करोड़ों लोग इस कोरोना काल में बेरोजगार हो गये है। वहीं आम आदमी की आय किसी न किसी रूप में प्रभावित हुई है। आर्थिक तंगी के बीच बढ़ती इस मंहगाई ने आम आदमी की कमर तोड़कर रख दी है। पेट्रोल और डीजल की कीमतों को लेकर पूरे देश में हा—हाकार मचा हुआ है। लेकिन सरकारों द्वारा पेट्रोल डीजल पर टैक्सों के माध्यम से अपना खजाना भरा जाता रहा है। यह हैरान करने वाली बात है भारत सरकार ने पेट्रोलियम पदार्थो पर विश्व के तमाम देशों से अधिक कमाई की है और वह इस कमाई में नम्बर वन पर है। यह तब हुआ जब अर्तराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें अपने निम्नतम स्तर पर रही है। कोरोना के कारण भारी आर्थिक संकट में घिरी जनता की परेशानी के बावजूद न तो राज्य सरकारों ने और न केन्द्र सरकार ने अपने टैक्सों में कमी करने की जरूरत समझी है। हो सकता है कि अब पांच राज्यों में होने वाले चुनाव से पूर्व वोट बटोरने के लिए टैक्सों में कुछ कमी की जाये। लेकिन ऐसा हुआ भी तो वह कुछ समय के लिए ही होगा। यह कमाल ही है कि देश के लोगों ने 50 रूपये किलो आलू भी खाया और सौ रूपये देकर एक लीटर पेट्रोल भी खरीदा तथा ढाई सौ रूपये लीटर ,खाघ तेल भी, और कहीं से भी विरोध की एक आवाज सुनाई नहीं दी। यह भी हो सकता है कि जनता यह माने बैठी हो कि विरोध या शोर मचाने से कुछ होने वाला नही है जो कुछ होगा वह चुनाव और वोट से ही होगा।